________________
१०८
यह मूलभूत अन्तर है।
विपश्यना पद्धति मन को शांत करने के लिए है, राग-द्वेष को कम करने के लिए है, केवल जानने और देखने के लिए है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में मन को शान्त करने की बात मुख्य नहीं है। केवल ज्ञाता द्रष्टा होना साधन है, साध्य नहीं है । साध्य है आत्मा का साक्षात्कार, आत्मा को जान लेना । प्रेक्षा और विपश्यना में यह एक मौलिक अन्तर है - प्रेक्षाध्यान के साथ जुड़ा है - आत्म-साक्षात्कार का दर्शन और विपश्यना के साथ जुड़ा है. दुःख को मिटाने का दर्शन ।
-
सन्दर्भ : श्वास प्रेक्षा
प्रेक्षा और विपश्यना में कुछ प्रयोग समान हैं। समानता का एक बिन्दु है `श्वास-प्रेक्षा। श्वास का प्रयोग विपश्यना में भी है, प्रेक्षा में भी है किन्तु उसकी प्रयोग - पद्धति में अन्तर है । विपश्यना में बल दिया जाता है सहज श्वास को देखने पर और प्रेक्षाध्यान में बल दिया जाता है दीर्घ श्वास प्रेक्षा पर। विपश्यना में अप्रयत्न मान्य है । प्रेक्षाध्यान में प्रयत्न को भी मान्य किया गया है। यह निर्देश दिया जाता है - हम प्रयत्नपूर्वक लम्बा श्वास लें और श्वास की प्रेक्षा करें। इस दृष्टि से आनापानसती और श्वास प्रेक्षा की ' स्थूल अर्थ में ही तुलना हो सकती है। एक ओर सहज श्वास का प्रयोग है तो दूसरी ओर प्रयत्नकृत दीर्घ श्वास का प्रयोग |
भेद में छिपा अभेद
विपश्यना में कहा जाता है - आयास मत करो, जो अनायास, सहज चल रहा है, उसकी विपश्यना करो, उसे देखो। प्रेक्षा में आयास वर्जित नहीं है । प्रयत्न से श्वास को लंबाना हमारी दृष्टि में ज्यादा उपयोगी है। दीर्घ श्वास से अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से लम्बा श्वास लेना (Long Breathing) बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है।
'श्वास - संयम : समवृत्ति श्वास प्रेक्षा
दूसरा अन्तर है - श्वास - संयम का । विपश्यना में कुंभक का प्रयोग मान्य नहीं है। प्रेक्षाध्यान में कुम्भक का प्रयोग भी करवाया जाता है । : प्रेक्षाध्यान में लयबद्ध श्वास को भी बहुत महत्त्व दिया जाता है। श्वास को लयबद्ध करने की एक प्रक्रिया है- पांच सैकेंड़ में श्वास लेना, पांच सैकेंड
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org