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संपादकीय
• सबहु सयाने एक मत - इस स्वर में एक सचाई है आर वह है अभेद चेतना की स्वीकृति। • जितने व्यक्ति हैं, उतने विचार हैं। जितने विचार हैं उतने मत हैं – इस ध्वनि में भी सत्य की प्रतिध्वनि है, जिसका हार्द है- भेद चेतना की स्वीकृति। • एकमत-अनेकमत, सम्मत-विमत, सम्मति-विमति- ये कुछ शब्द हैं, जो व्यक्ति की भेदात्मक और अभेदात्मक चेतना को अभिव्यक्ति देते हैं। • मतभेद को रोका नहीं जा सकता।
जहां व्यक्ति की स्वतंत्रता है, विचार की स्वतंत्रता है, वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है वहां मतभेद का न होना आश्चर्य है, होना आश्चर्य नहीं है। इसीलिए अनेक धर्म-संप्रदाय हैं, अनेक ग्रंथ और पंथ हैं, अनेक प्रवर्तक और विचारक हैं। • प्रश्न है
क्या मतभेद और विचार भेद समस्या है? विचार भेद समस्या को जन्म क्यों देता है? क्या संघर्ष का कारण विचार भेद है?
क्या भेद में अभेद को खोजा नहीं जा सकता? • हम विचार भेद को समझें किन्तु उसे समस्या न बनाएं। • जहां विचार भेद नहीं है वहां भी समस्या और संघर्ष हो सकते हैं।
जहां विचार भेद है वहां भी समस्या और संघर्ष से बचा जा सकता है। • विचार भेद के साथ समस्या और संघर्ष का नियत अनुबंध नहीं है।
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