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अवचेतन मन से संपर्क
ही इज रियली ए ग्रेट मेन, हू हेज कन्स्ट्रक्टेड सच ह्य ज बिल्डिग्स-वह व्यक्ति (तेरीयाद) निश्चित ही बड़ा आदमी है, जिसने इतने बड़े मकानों का निर्माण किया है।
__ कहां का अर्थ कहां चला गया ? अंग्रेज ने सोचा क्या सारा मद्रास तेरीयाद का ही है ? जहां जाता हूं, पूछता हूं 'तेरीयाद' 'तेरीयाद' शब्द ही सुनाई देता है । निश्चित ही 'तेरीयाद' एक महान व्यक्ति रहा है।
हम भी अध्यात्म की भाषा को नहीं जानते । उसको भूल बैठे हैं। आज अध्यात्म और धर्म की चर्चा करने वाला व्यक्ति कुछेक स्थूल बातों को पकड़कर आध्यात्मिक या धार्मिक बन बैठा है । अध्यात्म के सारे रहस्य विस्मृत हो चुके हैं । वह न अध्यात्म की भाषा को जानता है और न सचाइयों को जानता है । जब तक अध्यात्म की भाषा को नहीं समझा जायेगा तब तक भाव परिवर्तन की प्रक्रिया अथवा भाव-वशीकरण की प्रक्रिया को कैसे समझा जा सकेगा।
जिस दिन वैज्ञानिक जगत् में कोशिका की घोषणा हुई, उसके रहस्यों को जाना गया तब लोगों को आश्चर्य हुआ कि कितनी सूक्ष्म बात जान ली गई है । निरन्तर गति होती गई और आज कोशिका की बात स्थूल बन गई। वैज्ञानिक लोग 'जीन' तक पहुंच गये हैं। कोशिका के घटकों की जानकारी हुई है और आगे भी ज्ञात किया जा रहा है। आज आनुवंशिकता, हेरेडिटी, संस्कार आदि के जो संवाहक सूत्र हैं, उनकी विशद जानकारी प्राप्त की गई है। जेनेटिक इन्जीनियरिंग के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है। पौधों की तरह आदमी की 'कलम' लगाने की बात सोची जा रही है। जैसे पशुओं और वनस्पति की नस्लें सुधारी जाती हैं, वैसे ही आदमी की नस्ल सुधारने का वैज्ञानिक प्रयत्न भी बराबर चल रहा है । इस विज्ञान का आधार है-दृढ़ अध्यवसाय, निरन्तर गतिशीलता, निरन्तर विकास ।
अध्यात्म का क्षेत्र रूढ़ बन गया। जो व्यक्ति मान बैठा, उससे आगे जाने के लिए तैयार नहीं है। अध्यात्म की मूलभूत सचाइयां, अध्यात्म के मूलभूत रहस्य, जो गहन रहस्य थे, उन पर पानी फेर डाला है। आदमी क्रियाकाण्डी बनकर रूढ़ बनता जा रहा है। उन्हीं रूढ़ धारणाओं की चर्चा अध्यात्म के क्षेत्र में हो रही है। अध्यात्म के क्षेत्र में अवगाहन करने पर लगता है कि उसमें कितने सूक्ष्म रहस्य प्रतिपादित हुए थे।
अध्यात्म का एक महत्त्वपूर्ण घटक है-कर्मशास्त्र । उसमें एक शब्द है-'संक्रमण' । इसकी प्रक्रिया का विशद विवेचन वहां प्राप्त है । जीवनप्रक्रिया के संदर्भ में संक्रमण को समझा जाए तो ज्ञात होगा कि संक्रमण की वही प्रक्रिया है, जो नस्ल को सुधारने की प्रक्रिया है। कर्मशास्त्रीय संक्रमण का अर्थ है, पुण्य पाप रूप में परिवर्तित हो सकता है और पाप पुण्य रूप में परि
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