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मनोभाव की प्रक्रिया : भाव वशीकरण की प्रक्रिया
जितनी सचाइयां ज्ञात हुई हैं, वे सब निरीक्षण के द्वारा ही ज्ञात हुई हैं । निरीक्षण चाहे अन्तः प्रज्ञा से हो अथवा सूक्ष्मतम वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा हो । निरीक्षण के साधन भिन्न हो सकते हैं किन्तु निरीक्षण का स्वरूप भिन्न नहीं है । सूक्ष्म सत्यों को, आवृत सत्यों को देखना आवश्यक है क्योंकि उन्हें देखे विना विकास की संभावना नहीं की जा सकती। कुछ भी विकास या परिवर्तन करना है तो सबसे पहले सत्य का निरीक्षण करना होगा।
ध्यान की साधना करने वाला आत्म-निरीक्षण करता है, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखता है । अपने आप को देखना बहुत कठिन कार्य है। समस्याओं से भरा हुआ कार्य है । और यह इसलिए है कि प्रत्येक आदमी अन्तरद्वन्द्व का जीवन जी रहा है । मनोविज्ञान ने यह स्पष्ट प्रतिपादन कियाव्यक्तियों के मस्तिष्क में व्यक्तित्व की दो परतें होती हैं। डुएल पर्सनेलिटी वाले व्यक्ति अधिक मिलते हैं वे अन्तर्द्वन्द्व का जीवन जीते हैं। किंतु अध्यात्म के क्षेत्र में हजारों वर्ष पूर्व कर्मशास्त्र ने इस विषय का बहुत सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है। हमारी कठिनाई यह है कि हम अध्यात्म की भाषा नहीं जानते। हम आज की भाषा से परिचित हैं । अध्यात्म की भाषा बिल्कुल विस्मृत हो गई है। हम अध्यात्म की चर्चा करते हैं पर उसकी भाषा नहीं जानते । भाषा को न जानने से अनेक अनर्थ घटित हो जाते हैं। व्यवहार में भी हमें इनका अनुभव होता है।
एक घटना है। एक अंग्रेज मद्रास में गया । वह रिक्शे में बैठकर जा रहा था। एक बड़े मकान को देखकर उसने रिक्शा चालक से पूछा-हू कन्स्ट्रक्टेड दिस बिल्डिंग ? 'इस मकान को किसने बनाया ?' रिक्शा-चालक अंग्रेजी नहीं जानता था। उसने तमिल भाषा में कहा---'तेरीयाद' मुझे पता नहीं। अंग्रेज ने कहा-तेरीयाद, ठीक है। आगे चला, हाईकोर्ट का नया मकान आया । अंग्रेग ने फिर पूछा-हू कन्स्ट्रक्टेड दिस बिल्डिग ? उसने वही उत्तर दिया-तेरीयाद । थोड़ी दूर बढ़ा और देखा कि एक शवयात्रा आ रही है, अनेक लोग साथ हैं । अंग्रेज ने पूछा-हू डाइड ? कौन मर गया ? रिक्शा चालक बोला-तेरीयाद-मैं नहीं जानता ? तत्काल अंग्रेज रिक्शे से नीचे उतरा और अपना टोप उतारते हुए बोला-आई बो माई हेट इन रेस्पेक्ट ऑफ तेरीयाद-मैं तेरीयाद के सम्मान में अपना सिर झुकाता हूं।
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