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________________ अवचेतन मन से संपर्क बचना भी चाहते हैं । ये दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकती । दो मार्गों पर एक साथ नहीं चला जा सकता । दो घोड़ों पर एक साथ सवारी नहीं की जा सकती। हमें चुनाव करना होगा । या तो हमें मानसिक उलझनों का जीवन जीना होगा या मानसिक उलझनों को समाप्त कर मानसिक शांति का जीवन प्राप्त करना होगा। यदि हमें उलझनों का रास्ता चुनना है तो वह तैयार है और यदि हमें शांति का रास्ता चुनना है तो वह भी उपलब्ध है। शांति को प्राप्त करने का एक मात्र मार्ग है--परोक्ष और प्रत्यक्ष दूरी को समाप्त करने का प्रयत्न करना, सूक्ष्म जगत् को समझने का अभ्यास करना, शरीरगत रसायनों को समझना और आंतरिक भावों से परिचित होना । यही शांति का मार्ग है । भावों को पढ़ना बहुत जरूरी है। कुछेक व्यक्ति पूछते हैं-'मेरे मन में यह विकृति या दोष क्यों उभरा ? मैं कभी इस दिशा में सोचता ही नहीं, फिर यह विचार क्यों आया?' मैं कहता हूं, यह आकस्मिक नहीं है । भीतर कारण विद्यमान है । वही इस विकृति को पैदा कर रहा है। आकस्मिक इसलिए मान लेते हैं कि हम भीतर से परिचित नहीं हैं । भाव तंत्र में बुरा भाव जागा और उसमें बुरा विचार बना। हम पकड़ते हैं केवल विचार को। बेचारे विचार ने क्या बिगाड़ा? उसका उत्पादक तो कोई दूसरा है, जो बहुत गहरे में बैठा है। विचार का मतलब है गतिशीलता । विचार आता है और चला जाता है। फिर आता है और चला जाता है। विचार का अर्थ ही है-विचरण करने वाला । चलने वाला होता है विचार । ठीक शब्द का चुनाव हुआ हैविचार । संस्कृत भाषा की यह विशेषता है कि शब्द और अर्थ-दोनों साथसाथ चलते हैं । चिन्तन शब्द में वह सामंजस्य नहीं है, पर विचार शब्द में वह सामंजस्य है । विचार विचरण, आना-जाना । विचार का कोई दोष नहीं है । न आचरण का दोष है, न व्यवहार का दोष है और न मन का दोष है। दोष भीतर से आ रहा है । वहां तक हमारी पहुंच नहीं है, इसलिए बाहर से उलझ जाते हैं। इन सारी उलझनों का मूलस्पर्शी समाधान पाने के लिए हमें गहराई में उतरना होगा और गहराई में उतरने के लिए हमें एकाग्रता और आत्मसंयम का विकास करना होगा । एकाग्रता और आत्मसंयम ध्यान से सध सकता है। ध्यान का अभ्यास केवल आध्यात्मिक जीवन को उपलब्ध कराने वाला या मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करने वाला ही नहीं है। यह जीवन की सारी सफलताओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने वाला भी है। यह सफल जीवन जीने की कला है । जो व्यक्ति अपने अन्तर की गहराई का अनुभव नही करता, एकाग्रता और आत्म-संयम करना नहीं जानता, वह कभी अपने जीवन में शांति को उपलब्ध नहीं हो सकता । मानसिक शांति का मूल-मंत्र है---ध्यान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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