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अवचेतन मन से संपर्क
एकाग्रता इतनी गहरी बन जाती है कि रसायनों का भी साक्षात्कार हो जाता है। भाव का भी साक्षात्कार हो जाता है और भाव को उत्पन्न करने वाले कर्म संस्कारों का भी साक्षात्कार हो जाता है । ध्यान की प्रक्रिया साक्षात्कार की प्रक्रिया है।
प्रारम्भ में लोग उलझ जाते हैं । वे पूछते हैं कि श्वास के साक्षात्कार से अथवा प्रकंपनों और रंगों के साक्षात्कार के क्या होना जाना है ? हम कोई मन्त्र जाप करें, इष्ट का स्मरण करें तो लाभ हो सकता है।
हम मूल बात को भूल जाते हैं । श्वास, प्रकंपन या रंग के साक्षात्कार की बात बहुत बड़ी बात नहीं है। वड़ी बात या मुख्य बात है कि उनका साक्षात्कार करनेवाली हमारी एकाग्रता की शक्ति विकसित हो जाए । जब तक एकाग्रता की शक्ति का विकास नहीं होता, तब तक परमात्मा का ध्यान या मंत्र जप करने बैठेंगे तो मन भी चक्कर लगाएगा और बेचारा परमात्मा एक ओर खड़ा रह जाएगा। मन कहीं चक्कर लगाता रहेगा और मन्त्र बेचारा कहीं चला जाएगा। मूल प्रश्न पमात्मा, आत्मा या मंत्र-जाप का नहीं है । मूल प्रश्न है कि हमारा मन कितना शिक्षित हुआ है ? हमारा मन हमारी भावनाओं का आदर करता है या नहीं ? वह हमारे वश में है या नहीं ? यदि मन ही वश में नहीं है तो क्या निष्पत्ति होगी? सबसे पहले मन को मनाना है। मन इतना मानने लग जाए कि हम उसका जहां उपयोग करना चाहें, वह सहर्ष वहां उपयुक्त हो जाए ! कौन कहता है कि परमात्मा या आत्मा का ध्यान मत करो ? कौन कहता है कि मंत्र-जाप न करें ? अवश्य करें, पर इस ऊर्ध्वगमन के पहले सोपान को न भूलें। आत्मा का ध्यान, परमात्मा की उपासना, मन्त्र-जाप---यह पहला सोपान नहीं है। पहला सोपान है-मन को समझना, मन पर अधिकार पा लेना, मन को वश में कर लेना। जब हम पहले सोपान पर सफल हो जाते हैं तब ऊर्वारोहण सफल बन जाता है। उसमें कोई विघ्न नहीं आता। आगे की यात्रा निर्विघ्न हो जाती है । यदि पहले सोपान या पड़ाव पर ही भटक गए, मार्गच्युत हो गए तो मंजिल कभी नहीं मिल सकती। पहले पड़ाव या पहले सोपान का बहुत मूल्य है । अनेक व्यक्ति बीसों वर्षों से उपासना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, किंतु कहीं पहुंच नहीं पाते । एक बैंक मैनेजर ने बताया कि वह दस वर्षों से निरन्तर ध्यान कर रहा है, पर मन वैसे ही भटकता है जैसे पहले भटकता था। कोई अन्तर नहीं आया है। मैंने कहा--दस क्या, उस पर एक शून्य और लगा दो, सौ वर्ष तक भी ध्यान करते रहोगे, फिर भी कहीं नहीं पहुंच पाओगे। क्योंकि बिना किसी पद्धति या मार्ग के मन स्थिर नहीं हो सकता । हमें एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरना होगा, तभी सफलता मिल सकती है। जब तक चाबी हाथ नहीं आएगी तब तक भटकाव नहीं मिटेगा। हम इस तथ्य को
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