________________
अवचेतन मन से संपर्क
का काम है-चेतना की जागृति करना । चेतना की जागृति होने पर जड़ता टिक नहीं सकती। 'जाड्यं' कफ का खास लक्षण है। जब शरीर में कफ का प्रकोप बढ़ता है तब शरीर जकड़ जाता है, अकड़ जाता है, स्तब्ध हो जाता है। चेतना की जागृति से यह स्तब्धता नष्ट हो जाती है।
तीन दोष हैं-वात, पित्त और कफ । इन तीनों को मिटाने के लिए तीन आध्यात्मिक उपाय हैं-ज्ञान, दर्शन और चरित्र । जब वे तीनों शारीरिक दोष उपशांत होते हैं तब स्वतः ही अशुद्ध भावधारा नीचे चली जाती है और शुद्ध भावधारा बहने लग जाती है।
ध्यान साधक का यह मुख्य उद्देश्य है कि शुद्ध भावधारा जागृत रहे, प्रवहमान रहे । श्वास प्रेक्षा, शरीर प्रेक्षा, अंतर्यात्रा---ये सब शुद्ध भावधारा को जागृत रखने के आलंबन हैं।
___ एक साधक ने पूछा, क्या यह श्वासप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा आदि से अन्त तक यही है या कुछ और भी है ?
मैंने कहा---न आदि है और न अन्त है, कुछ भी नहीं है। जब कुछ भी नही है तो क्यों करवाई की जा रही है ?
मैंने कहा--आदि और अन्त है वर्तमान क्षण में जीना। ध्यान का प्रथम सोपान भी है वर्तमान क्षण में जीना और ध्यान का अंतिम सोपान भी है, वर्तमान क्षण में जीना । वर्तमान क्षण ही महत्त्वपूर्ण क्षण है। जो वर्तमान क्षण में जीता है वह राग-द्वेष मुक्त क्षण में जीता है। जो व्यक्ति केवल वर्तमान क्षण में जीता है, वर्तमान क्षण में घटित होने वाली घटनाओं का अमुभव करता है, वह केवल अनुभव करता है, ज्ञाता-द्रष्टा होता है। यही ध्यान का आदि बिंदु है, यही ध्यान का मध्य-बिंदु है और यही ध्यान का चरम बिंदु है । यही सब कुछ है।
अहिंसा का अर्थ है-राग-द्वेष मुक्त क्षण में जीना । सामायिक का अर्थ है-राग-द्वेष मुक्त क्षण में जीना। ध्यान का अर्थ है-राग-द्वेष मुक्त क्षण में जीना।
वास्तव में अहिंसा, सामायिक और ध्यान में कोई अन्तर नहीं है। तीनों एक हैं। फिर प्रश्न आता है कि हमें केवल ध्यान ही क्यों कराया जा रहा है ? हमें सामायिक का अनुष्ठान क्यों नहीं कराया जा रहा है ? हमें अहिंसा का अनुष्ठान क्यों नहीं कराया जा रहा है ? क्यों बार-बार श्वास दर्शन या शरीर दर्शन की बात कही जा रही है ?
इसका उत्तर यही है कि इस सहारे के बिना वर्तमान क्षण का अनुभव नहीं हो सकता । जब तक हम किसी आलंबन के सहारे वर्तमान क्षण तक नहीं पहुंचते तब तक न अतीत से छुटकारा मिलता है और न भविष्य से छुटकारा मिलता है। कभी अतीत की स्मृति सताने लग जाती है, कभी भविष्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org