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भाव और आयुर्विज्ञान
भीतर तक प्रवेश कर जाती है, इसलिए वह तोड़ती नहीं, खोलती है ।
यदि हमारी चेतना भीतर तक चली जाती है, चित्त भीतर तक चला जाता है तो न जाने कितने रहस्यों को उद्घाटित कर देता है, अनावृत कर देता है, कितनी गुत्थियों को खोल देता है। मनोग्रन्थियों को खोलने की ये सारी चाबियां हैं । जब ये चाबियां प्राप्त हो जाती हैं हम मनोग्रन्थियों को सहजतया खोल सकते हैं और मन को ग्रन्थिमुक्त बना सकते हैं । न जाने कितनी ग्रन्थियां घुली हुई हैं मन में । हम उनको समझें और उपयुक्त चाबियों से उनको खोलने का प्रयत्न करें ।
हमारा मन ग्रन्थिमय बन गया है। प्रश्न होता है कि हमारा मन जब वायु, पित्त और कफ से प्रभावित होता है तो क्या इस सिद्धान्त को जान लेना ही पर्याप्त है अथवा ऐसा कोई उपाय करना है, जिससे मन अप्रभावित रह सके ? क्या उसे ग्रंथिमय ही रखना है या ग्रन्थिमुक्त करना है ?
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ग्रन्थिमोचन का कार्य अध्यात्म का है । यहां आयुर्वेद और अध्यात्म का मिलन होता है । अध्यात्म का काम है कि वह इन दोषों के प्रभाव से मन को बचाए । आयुर्वेद ने इतना मात्र बता दिया कि शोक और भय से कौन सा दोष प्रभावित होता है पर उसने यह नहीं बताया कि उन दोषों के विकोपन को कैसे मिटाएं ? आयुर्वेद में यत्र तत्र इसका यत्किंचित् निर्देश है पर वह पर्याप्त नहीं है । अनेक ऐसी औषधियां बताई हैं, जिनसे ये दोष शान्त होते हैं, इनका शमन होता है किन्तु इनके सर्वांग निर्मूलन का उपाय आयुर्वेद के पास नहीं है ।
अध्यात्म के द्वारा इन तीनों दोषों पर विजय प्राप्त की जा सकती है । अध्यात्म के आचार्य ने कहा
वातं विजयते ज्ञानं दर्शनं पित्तवारणम् । चरणं कफनाशाय धर्मस्तेनामृतायते ।।
-ज्ञान वायु के प्रकोप को शांत करता है, दर्शन पित्त के प्रकोप को शांत करता है और चारित्र कफ के प्रकोप को शांत करता है ।
बड़ा अजीब लगता है कि कहां ज्ञान, दर्शन और चारित्र की त्रिवेणी कहां का संबंध कहां जोड़
।
रहस्यवादी धारा के संतों
और कहां वात, पित्त और कफ की त्रिपदी ? गया है ? यही अध्यात्म की रहस्यवादी धारा है अध्यात्म को इतने रहस्यमय ढंग से प्रस्तुत किया है को सहसा पकड़ नहीं पाता है । वे सूत्र बहुत अटपटे लगते हैं पर गहराई मे जाकर देखने पर वे यथार्थ प्रतीत होते हैं ।
कि साधक उन रहस्य-सूत्र
ज्ञान वायु पर विजय प्राप्त करता है। ज्ञान का कार्य है-मन को निष्काम बनाना । इच्छामुक्त बनाना - - "भवेद्ज्ञानान्मनोऽनिच्छं ।" जैसे-जैसे ज्ञान का विकास होगा वैसे-वैसे इच्छाएं समाप्त होती जाएंगी । इच्छायें जितन
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