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अवचेतन मन से संपर्क
मूल्य समझकर जब' जिसको जितना मूल्य देना है, उसको उतना मूल्य दें। हमारे मनोभाव का उपादान हमारे सूक्ष्म शरीर में विद्यमान है, हमारी चेतना के सूक्ष्म अध्यवसायों में है. किन्तु भावों की अभिव्यक्ति होती है निमित्तों के द्वारा । हमारे शरीर में होने वाले रसायन, जैविक कण आदि उसकी अभिव्यक्ति में निमित्त बनते हैं । जैसा रसायन होता है, वैसा भाव बनता है । एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भावों से हमारे रसायन प्रभावित होते हैं और रसायन भावों को प्रभावित करते हैं । एक चक्र सा बन जाता है---काम, शोक, भय, वायु । इसका तात्पर्य है कि वायु का प्रकोप तब होता हैं जब काम, शोक और भय का प्रकोप बढ़ता है। तीव्र काम की भावना, तीव्र शोक और तीव्र भय वायु को प्रकुपित करते हैं । हम यह भी कह सकते हैं-जब वायु का प्रकोप होता है तब काम, भय और शोक बढ़ता है । पूरा सर्कल है। भाव से रसायन और रसायन से भाव प्रभावित होता है ।
चित्त बहुत चंचल है। वह जमता ही नहीं, एकाग्र ही नहीं होता । और-और विश्लेषणों के साथ हमें यह भी विश्लेषण कर लेना चाहिए कि चित्त की चंचलता में कहीं कोई शारीरिक रसायन तो बाधा नहीं डाल रहा है ? आयुर्वेद कहता है--पित्तोदयाद् चांचल्यम्'-पित्त के प्रकुपित होने पर चित्त की चचलता बढ़ती है। जिस व्यक्ति का पित्त कुपित है, वह यदि ध्यान करने बैठेगा तो उसका ध्यान एकाग्र नहीं होगा।
कुछेक व्यक्तियों को तन्द्रा निरन्तर सताती है। इसका कारण यह है कि उन व्यक्तियों में कफ का प्रकोप है । यदि यह बात समझ में आ जाती है तो उसका समाधान भी ढूंढा जा सकता है । आयुर्वेद के अनुसार भैंस का दूध निद्रा को बढ़ाता है । अनिद्रा के रोग में भैंस का दूध उपयोगी होता है । दही भी नींद को पैदा करता है। ये पदार्थ भावों को पैदा करने वाले हैं। इन पर भी हमें विचार करना चाहिए । इन पर विमर्श करने पर भाव-परिवर्तन की चाबी हमारे हाथ लग जाती है। सबसे कठिन कार्य है चाबी का हाथ आना । चाबी के बिना ताला नहीं खुलता ।
चाबी गुम हो गई । ताला नहीं खुला । आदमी ने ताले पर हथोड़े से चोट की। फिर भी ताला नहीं खुला। उसने दो-चार प्रहार किए, फिर भी ताला नहीं खुला। इतने में ही एक आदमी चाबी लेकर आया । ताले में चाबी घुमाई और ताला खुल गया। हथोड़े से चोट करने वाले व्यक्ति ने कहाअरे, यह क्या ? मैंने इतने प्रहार किए और ताला नहीं खुला, तुमने केवल चाबी अन्दर घुमाई और ताला खुल गया । यह क्या ? वह बोला-तुम सचाई को नहीं जानते । जो भीतर देखना या पैठना नहीं जानता, वह तोड़ सकता है, खोल नहीं सकता । वह टूट सकता है, खुल नहीं सकता। हथोड़ा भीतर नहीं जाता, इसलिए वह तोड़ सकता है, खोल नहीं सकता। चाबी
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