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मन को शान्ति का प्रश्न
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अशान्ति बहुत है उसे मिटाने का उपाय बताएं । मैं जल्दी में हूं । अभी-अभी मुझे ट्रेन पकड़नी है । शीघ्र उपाय बतायें । मैं मन ही मन सोचता हूं, कितने नादान हैं ये मनुष्य ! मानसिक उलझन मिटाना चाहते हैं, पर उसे दाल-रोटी मान रहे हैं । क्या वह क्षण भर में सुलझायी जा सकती है ? दालरोटी प्राप्त करना या खाना भी तो सीधी बात नहीं है । बीज कहां वोया जाता है ? कहां उगता है ? कहां बिखरता है ? पूरी प्रक्रिया को देखें । कितनी लंबी श्रृंखला जुड़ी होती है उसके साथ । सारी प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् ही दाल-रोटी प्राप्त होती है ।
मानसिक उलझनों को सुलझाने और मानसिक शान्ति को घटित करने के लिए भी अनेक प्रक्रियाओं से गुजरना आवश्यक होता है। जब तक हम मन पर होने वाले प्रभावों के घटक तत्त्वों को नहीं समझेंगे, तब तक मानसिक शांति का प्रश्न समाहित नहीं होगा । इस संक्रमण और प्रदूषण के वातावरण में जीने वाला आदमी जब तक शोधन नहीं करेगा तब तक साधना की बात पर्याप्त नहीं होगी । चूल्हा है | आग जल रही है । ऊपर पानी से भरा हुआ बर्तन रखा हुआ है। आदमी सोचता है कि पानी गर्म न हो । नीचे आग जल रही है, बर्तन को आंच लग रही है तो पानी गर्म कैसे नहीं होगा ? अशुद्ध भावों की तेज अग्नि भभक रही है तो ऊपर रखा हुआ मन वह उबलेगा क्यों नहीं ? अशान्त क्यों नहीं होगा ? मन नहीं होता । उसका स्वभाव है ठंडापन । जब आग होना पड़ता है | बेचारा मन अशान्त नहीं है, ठंडा है, की भट्टी जल रही है, तब मन गर्म क्यों नहीं होगा आएगा ?
गर्म क्यों नहीं होगा ?
पानी है । पानी गर्म
आती है, तब उसे गर्म
किन्तु नीचे अशुद्ध भावों
?
उसमें उबाल क्यों नहीं
यदि मन की अशांति को मिटाना है तो हमें ध्यान देना होगा भावों पर । भाव की शांति, मन की शांति । भाव की अशांति मन की अशांति । यह समीकरण प्राप्त होता है ।
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