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अवचेतन मन से संपर्क
चुम्बकीय तरंग ही ऐसे हैं कि वे यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति में उद्दंडता के
भाव उत्पन्न करते हैं ।
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गुजरात प्रवास में एक पत्रकार ने आचार्य श्री से पूछा - 'आपको गुजरात की भूमि कैसी लगी ?' आचार्यवर ने कहा - 'यह भूमि आध्यात्मिक तरंगों से परिपूर्ण है । यहां अध्यात्म का बीज बोया जा सकता है । भूमि का, क्षेत्र का प्रभाव होता है । एक क्षेत्र में जाते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है और एक क्षेत्र में जाते ही मन अकारण ही विषण्ण हो जाता है ।
अनुयोगद्वार सूत्र की चूर्णि में सिद्धशिला का महत्त्व वर्णित है । कहा गया - उस भूमि का ऐसा प्रभाव है कि वहां जाकर यदि कोई साधना करता है, ध्यान करता है तो वह सहज-सरल ढंग से केवल ज्ञानी बन जाता है । हमारे मन में भी भावना जागती है कि हम भी उस स्थान की खोज करें, वहां जाएं और सारी प्रक्रियाओं से मुक्त होकर, सरलता से केवलज्ञानी बन जाएं । सिद्धशिला का वह स्थान यथार्थ है, पर उसको पाना सरल नहीं है ।
नेपाल के एक तांत्रिक जैन विश्व भारती में आए। उन्होंने 'तुलसी अध्यात्म नीडम्' की भूमि को देखा, वहां कुछ दिन रहे, ध्यान के प्रयोग किए । उन्होंने कहा - मेरी दृष्टि में पांच सौ चार सौ वर्ष पूर्व यह भूमि साधना की भूमि रही है । यहां अनेक ऋषि-मुनि तपे हैं । यहां आते ही मन शुभ भावनाएं करने लगता है, चिंतन प्रशस्त और शुभ होता है । यहां ध्यान भी गहरा जमता है ।
क्षेत्र का प्रभाव मन को प्रभावित करता है । यह बात बहुत सूक्ष्म है । सामान्य व्यक्ति इसको समझ ही नहीं पाता । पर क्षेत्र और काल को समझे बिना किसी भी समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। वैज्ञानिक युग में जीने वाला व्यक्ति यह जानता है कि हमारा यह आकाश मंडल तरंगों और ऊर्मियों से भरा पड़ा है । इसमें अनन्त वाईब्रेशन्स हैं । यह सूक्ष्म और सूक्ष्मतर कणों से भरा है और वे सारे कण आदमी को प्रभावित करते हैं । सौर मंडल से आने वाले विकिरण, भूमि पर होने वाले प्रकंपन, पर्यावरण में होने वाले प्रकंपन - ये सारे मनुष्य को प्रभावित करते हैं, व्यक्ति की भावधारा को प्रभावित करते हैं । भावधारा बोझ डालती है मन पर ।
जो व्यक्ति मन की समस्याओं को सुलझाना चाहता है, मानसिक शान्ति को घटित करना चाहता है तो उसे गहराई में जाना ही होगा । उसे अनेक तथ्यों को ज्ञात करना होगा। स्वयं को खपाए बिना मानसिक शांति उपलब्ध नहीं होती । जो बिना प्रयत्न या श्रम किए मानसिक शान्ति को घटित करना चाहता है, वह मानसिक उलझनों में और अधिक फंस जाता है । अनेक व्यक्ति व्यग्रता से आते है और पूछते हैं— 'महाराज ! मानसिक
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