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मन की शान्ति का प्रश्न
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जिन रहस्यों का उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ, उन रहस्यों का उद्घाटन बहुत पहले कर्मशास्त्र कर चुके हैं । हमारी प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, प्रत्येक कर्म का प्रतिकर्म होता है । वे हमारे साथ जुड़ जाते हैं। वे न केवल इस मस्तिष्क के साथ जुड़ते हैं, किन्तु सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ जाते हैं । हमारा सूक्ष्म शरीर निरन्तर संचित होता रहता है । अनंत अनंत बंधनों का चक्र उसमें चलता है । जब वे स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होते हैं तब उनका अनुभव होता है । वह चक्र निरंतर चलता ही रहता है । स्थूल शरीर में जितने केन्द्र हैं, स्रोत हैं, द्वार है, वे सबके सब सूक्ष्म शरीर से संबंधित केन्द्र, स्रोत और द्वार हैं । जैसी सूक्ष्म शरीर की रचना है, वैसी ही संवादी रचना स्थूल शरीर की हो जाती है ।
भाव का स्रोत है— सूक्ष्म शरीर । सारे भाव सूक्ष्म शरीर में उत्पन्न होते हैं और वहां से छान कर स्थूल शरीर में आते हैं । वे ही भाव हमारे शरीर, मन और वाणी को प्रभावित करते हैं, उनमें अपना चैतन्य उड़ेल देते हैं । तब हमारा शरीर, मन और वाणी - तीनों संचेतन हो जाते हैं। स्रोत भीतर है, वहीं से सब कुछ आ रहा है ।
हमें भाव और सूक्ष्म शरीर को समझना है । यदि केवल मन के आविष्कार की बात सोचेंगे तो हाथ कुछ भी नहीं आएगा । हमें सारा ध्यान केन्द्रित करना है भाव -संस्थान पर । भाव को केन्द्र में रखकर हमें ध्यान का प्रयोग करना है । हमें भाव का परिष्कार करना है ।
ध्यान करने वाले व्यक्ति में और ध्यान न करने वाले व्यक्ति में क्या अन्तर होता है, इसे भी हमें जान लेना है । हर व्यक्ति अतीत को भोगता है । ध्यान करता है, वह भी अतीत को भोगता है और ध्यान न करने वाला भी अतीत को भोगता है । जो संचित कर्म है, उसे भोगना पड़ता है। वर्तमान में दोनों व्यक्ति, ध्यान करने वाला और ध्यान न करने वाला, प्रवृत्ति करते हैं और अतीत का भोग भी करते हैं, पर दोनों में अन्तर क्या है ? उनका अन्तर स्पष्ट है । जो व्यक्ति ध्यान नहीं करता, ध्यान का अभ्यास नहीं करता, वह वर्तमान में अतीत को भोगता है और फिर अतीत के भोग जैसे ही भविष्य का निर्माण कर लेता है | एक शृंखला जुड़ जाती है । जैसा अतीत, वैसा अतीत का भोग, वैसा ही भविष्य, वैसा ही भविष्य का निर्माण । हिंसा का विपाक भोग रहा है तो नई हिंसा की प्रवृत्ति कर, फिर हिंसा को दो कदम आगे बढ़ा देता है । हिंसा, झूठ, चोरी - इन अतीत के भावों के परिणामों को वर्तमान में भोगता है । वर्तमान में पुनः हिंसा की प्रवृत्ति, चोरी की प्रवृत्ति और असत्य की प्रवृत्ति कर भविष्य के लिए एक नए अतीत का निर्माण और कर लेता है । यह चक्र आगे से आगे चलता रहता है ।
ध्यान करने वाला व्यक्ति इस चक्र को तोड़ देता है । वह अतीत को
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