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अवचेतन मन से संपर्क
दृष्टिकोण स्वयं भ्रांत है। यह एकांगी दृष्टिकोण है, सर्वांगीण नहीं । क्या हमारा जीवन केवल अध्यात्म से चल पाएगा? यथार्थ की तीन समस्याएं हैं---रोटी की समस्या, भूख की समस्या और वस्त्र की समस्या । क्या धर्म
और अध्यात्म इनका समाधान कर पाएगा? अध्यात्मवादी दृष्टिकोण से यह संभव नहीं कि समस्याओं का समाधान हो सके। इन समाधान के लिए दोनों आवश्यक हैं-अध्यात्म विकास और भौतिक विकास । पदार्थ-विकास की अनिवार्यता और पदार्थवादी दृष्टिकोण-बिलकुल दो धाराएं हैं। समस्या वहां उत्पन्न होती है जहां दृष्टिकोण पदार्थवादी बन जाता है।
___ आज के विज्ञान की यह सबसे बड़ी कठिनाई है कि उसमें द्रष्टा, ज्ञाता या सब्जेक्ट की उपेक्षा है । दृश्य और पदार्थ के प्रति उसका अधिक लगाव है । सारा विकास पदार्थ से नापा जाता है। यही तो कारण है कि आज के शिक्षासंस्थानों में उन्हीं विद्याओं को प्राथमिकता प्राप्त है, जो पदार्थ-विकास में सहायभूत होती हैं। उनमें चरित्र-विकास और चैतन्य-विकास का कोई स्थान नहीं है । ऐसा लगता है कि चैतन्य-विकास और पदार्थ-विकास-दोनों में आत्यंतिक विरोध है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इसी का परिणाम है कि निषेधात्मक दृष्टिकोण पनपतो जा रहा है । उस पर नियंत्रण पाना कठिन हो रहा है।
जीवन-विज्ञान की परिकल्पना इसीलिए की गई कि भौतिक या लौकिक विद्याओं के साथ-साथ एक विद्या वह भी जुड़नी चाहिए, जिससे चैतन्य का विकास हो, चरित्र का विकास हो। वह विद्या जुड़नी चाहिए, जिसके द्वारा चैतन्य के प्रति आदर-भाव बढ़ सके और चैतन्य का वास्तविक मूल्यांकन किया जा सके।
___ सभी जानते हैं, आज दुनिया में सत्ता का मूल्य है, धन सम्पत्ति का मूल्य है, आदमी का कोई मूल्य नहीं है। यह उन लोगों की भी शिकायत है, जो धन का विरोध करते हैं और उनकी भी शिकायत है, जो चैतन्य का विरोध करते हैं । आदमी का कोई मूल्य नहीं है। मूल्य की बात तो दूर, आदमी को आदमी मानना भी मुश्किल हो रहा है। जो साधन-संपन्न है, वह आदमी माना जाता है और जो साधन विहीन है, उसे आदमी मानने में ही हिचक होती है। हमारे मूल्यांकन का सारा आधार ही है-पदार्थ । इस स्थिति में यदि नकारात्मक दृष्टिकोण पनपता है, स्वार्थ-चेतना जागती है तो हमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए ?
प्रश्न है क्या इस दृष्टिकोण को बदला जा सकता है ? क्या ऐसा वातावरण निर्मित किया जा सकता है जहां चैतन्य प्रमुख रहे, आगे रहे या कम से कम चैतन्य और पदार्थ का संतुलन बना रहे ? क्या ऐसी स्थिति बन सकती है जहां चैतन्य का भी स्थान रहे और पदार्थ का भी स्थान रहे, शरीर को भी स्थान मिले और चेतना को भी स्थान मिले ? दोनों समन्वित होकर
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