________________
४७
विधायक दृष्टिकोण पदार्थवादी वत्ति है। पदार्थों का उपयोग करना पदार्थवादी दष्टिकोण नहीं है। भौतिक उपकरणों का स्वीकरण और उपयोग तथा आवश्यकता की संपूर्ति करना भौतिकवादी दृष्टि नहीं है। भौतिकवादी दृष्टि है-दिमाग में पदार्थ का रहना।
आज की स्थिति का विश्लेषण करने पर स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि समाज में पदार्थवादी दृष्टिकोण बहुत प्रबल हो गया है । यह प्रत्यक्ष उदाहरण है.--दो भाई एक साथ व्यवसाय करते हैं। एक भाई सारा कारोबार देखता है और दूसरा निश्चितता से जीवन बिताता है । उसे भाई पर पूरा भरोसा है । पांच-सात वर्ष बीतते हैं और निश्चित रहने बाले भाई को भिखारी बनने की नौबत आ जाती है । वह धोखा खा जाता है। कारण है कि कारोबार देखने वाले भाई को भाई का संबंध मुख्य नहीं लगता, उसे मुख्य लगता है पदार्थ, धन, सम्पत्ति । भाई-भाई के, पिता-पुत्र के, पति-पत्नी के मानवीय संबंधों में जो तनाव आया है, विसंगति आई है, उसका मूल कारण है, पदार्थवादी दृष्टिकोण । इसी दृष्टिकोण के कारण सगे-संबंधियों से या पारिवारिक जनों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार होता है और आज वह चरम-बिन्दु तक पहुंच चुका है।
भौतिकवादी दृष्टि की पहली निष्पत्ति है-चैतन्य की उपेक्षा । यह कभी संभव नहीं है कि पदार्थवादी दृष्टिकोण हो और चैतन्य की उपेक्षा न हो । आज चैतन्य गौण है और पदार्थ मुख्य है, संबंध गौण है और धन मुख्य है । यही चैतन्य के प्रति उपेक्षा है।
__ आज व्यक्ति और समाज के सामने केवल ओब्जेक्ट है । सब्जेक्ट को भुला दिया गया है। उसको भूले बिना यह स्थिति बन नहीं सकती। जब तक चैतन्य रहता है तब तक निषेधात्मक दृष्टिकोण नहीं बन सकता। जब चैतन्य का तिरोभाव होता है, तभी निषेधात्मक दृष्टिकोण पनपता है ।
पदार्थवादी दृष्टिकोण में संदेह पनपता है। चैतन्यवादी दृष्टिकोण में संदेह को कोई स्थान ही नहीं रहता। जब संदेह होता है, भय होता है, अविश्वास होता है तब संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है । परस्पर में शत्रुता का भाव बढ़ जाता है, लड़ाइयां प्रारम्भ हो जाती हैं। यह सारी नकारात्मक प्रवृत्तियों की शृंखला है और यह पदार्थवादी दृष्टिकोण की देन है। पदार्थवादी दृष्टिकोण और पदार्थ का उपयोग या उपभोग-ये दो हैं, एक नहीं है। हम इन्हें एक ही दृष्टि से देखते हैं, इसलिए इन दोनों में भेद नहीं कर पाते। सचमुच इनमें भेद करना चाहिए । पदार्थ का उपयोग बुरा नहीं है । पदार्थ का उपयोग यथार्थ है, आवश्यक है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। कुछ धार्मिक लोग इस बात पर ऐकान्तिक भार देते हैं कि पदार्थ का उपभोग गलत है, बुरा है । यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org