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अवचेतन मन से संपर्क
निश्छलता, उसकी स्पष्टवादिता ने सिकन्दर को चरणों में लेटने के लिए विवश
कर डाला ।
जिसका दृष्टिकोण विधायक होता है, दुनिया की कोई शक्ति उसे विचलित नहीं कर सकती ।
भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा - 'तुम धर्म प्रचार के लिए जा रहे हो। कोई गालियां देगा तब क्या करोगे ?'
'हम सोचेंगे गालियां ही दीं, पीटा तो नहीं ! '
'यदि कोई पीटेगा तब क्या करोगे ? '
'हम सोचेंगे, पीटा ही है, प्राणों से तो नहीं मारा ।'
'कोई तुम्हें मारेगा, तब क्या करोगे ?'
'उन्होंने हमारे प्राण ही तो लूटे, हमारा धर्म तो नहीं लूटा ।'
भगवान् बुद्ध ने कहा- 'तुम धर्म प्रचार के योग्य हो ।' ऐसे व्यक्तियों को कौन दुःखी बना सकता है ?
जिसका दृष्टिकोण विधायक (पोजिटिव) होता है, उस व्यक्ति को दुःखी बनाने का दुनिया की किसी भी शक्ति और सत्ता के पास कोई उपाय नहीं है । यह सचाई ज्ञात हो जानी चाहिए कि जीवन की सफलता और विफलता, सुख और दुःख, शांति और अशांति - यह सब पर निर्भर है । यदि दृष्टिकोण निषेधात्मक होता है पक्ष उभर कर सामने आ जाता है और यदि दृष्टिकोण जीवन का शुक्लपक्ष सामने आ जाता है ।
व्यक्ति के दृष्टिकोण
तो जीवन का कृष्णविधायक होता है तो
साधना का प्रयोजन है - जीवन के दृष्टिकोण को विधायक बनाना । यही साधना का परम उद्देश्य है । परन्तु दृष्टिकोण विधायक कैसे बने यह प्रश्न है । आज आदमी का दृष्टिकोण भौतिकवादी बना हुआ है । भौतिकवादी दृष्टिकोण का अर्थ है - पदार्थवादी दृष्टिकोण । यह सच है कि जब तक शरीर है तब तक पदार्थों को सर्वथा छोड़ा नहीं जा सकता । आदमी विरोधी जीवन जी रहा है, द्वन्द्वात्मक जीवन जी रहा है । पदार्थ को न संन्यासी छोड़ सकता है और न वीतराग अवस्था तक पहुंचा हुआ ही छोड़ सकता है । क्योंकि जब तक खाना पीना है, सर्दी गर्मी से बचना है तब तक पदार्थों को छोड़ा नहीं जा सकता । दूसरी बात है कि पदार्थ को क्यों छोड़ा जाए ? वह हमारा कुछ भी अनिष्ट नहीं करता । हमारा तब अनिष्ट होता है जब हम पदार्थवादी बन जाते हैं । पदार्थों का होना, पदार्थों का उपयोग करना और पदार्थवादी होना-ये दो पृथक्-पृथक् बातें हैं । पदार्थ का उपयोग है और वह उपयोग सर्वसम्मत है, असम्मत नहीं है, यह एक बात है और पदार्थवादी बन जाना, यह दूसरी बात है ।
मकान में रहना बुरा नहीं है किन्तु दिमाग में मकान का रहना,
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