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________________ ३८ अवचेतन मन से संपर्क और बताऊं, त्यों ही वे सारे विचार गायब हो गए, विचार आने बन्द हो गए। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। विचार आए तो विचार को देखो, क्रोध या आवेग उभरे तो उसे देखो। जो कुछ हो रहा है, शरीर के क्षेत्र में, मस्तिष्क या विचार के क्षेत्र में, भाव के क्षेत्र में, उसे देखो, जैसे ही देखने में एकाग्रता होगी, सब शांत हो जाएगा । कल्पना, स्मृति और चिन्तन से उत्तेजना प्राप्त होती है। केवल देखने से उत्तेजना शांत हो जाती है। परिवर्तन का तीसरा सूत्र है-- शुद्ध भावधारा। यह तीसरा उपाय सरल नहीं है। निरन्तर शुभ भावधारा बनी रहे, यह संभव नहीं है। भाव इतने विचित्र प्रकार के होते हैं कि आदमी समझ ही नहीं पाता। एक भाई ने कहा- मुझे पसन्द नहीं है कि अमुक केन्द्र पर ध्यान करो, अमुक रंग का ध्यान करो। मैं तो आत्मा को देखना चाहता हूं। ___ मैंने कहा-तुम्हारी बात सही है। तुम सीधा आत्मा को देखना चाहते हो । कौन चाहेगा शरीर और श्वास को देखना । सब आत्म साक्षात्कार चाहते हैं । पर यह सीधी बात नहीं है। हमें एक-एक सोपान चढ़ना होगा। भावधारा शुद्ध रहे—यह बहुत अच्छा उपाय है किन्तु भावधारा का प्रश्न इतना सहज-सरल नहीं है। भीतर में जितनी प्रतिक्रियाएं होती हैं, उनको संभालना बहुत जरूरी है। उनके लिए अनेक आलम्बन निर्दिष्ट हैं । उन आलम्बनों के द्वारा हम इस स्थिति तक पहुंच जाते हैं कि हमारे मस्तिष्क में निरन्तर शुद्ध भावधारा प्रवाहित होती रहे, शुद्धभाव उपजते रहें। आलम्बनों का सहारा बहुत मूल्यवान् है । यही ध्यान की वास्तविक स्थिति है। हमें उस स्थिति तक पहुंचना है जहां अपवित्र भाव की तरंग पैदा ही न हो। हमारा लक्ष्य यही है । लक्ष्य प्राप्त कर लेने पर वे आलम्बन छूट जाते हैं, जैसे तट पर आकर नौकाएं त्यक्त हो जाती हैं। _परिवर्तन का चौथा साधन है तपस्या । इसका सामान्य अर्थ हैसहिष्णुता की शक्ति का विकास । आज भारत में दो समस्याएं शीर्ष स्थ हैं। गरीबी और लाचारी । ये यथार्थ की समस्याएं हैं । इनका सबसे बड़ा कारण है-असहिष्णुता । आदमी श्रम करना नहीं जानता, कष्ट सहना नहीं जानता। जो श्रम नहीं करता, वह विकास नहीं कर सकता । कोई भी समाज या राष्ट्र, जो श्रम करने और कष्ट सहने से कतराता है, वह प्रगति नहीं कर सकता। तपस्या का अर्थ है-कष्टों को सहने की क्षमता का विकास । जब व्यक्ति प्रत्येक स्थिति और परिस्थिति को झेलने में सक्षम होता है तब परिवर्तन होने लगता है। परिवर्तन के ये चार माध्यम--स्वाध्याय, ध्यान, भाव-विशुद्धि और तपस्या-दमन के मार्ग नहीं हैं, ये हैं शोधन और रेचन के दिशासूचक यन्त्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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