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________________ काम परिष्कार का दूसरा सूत्र : परिणाम दर्शन २५ मूर्च्छा में नहीं रहेगा । न वह मूर्च्छा में खाएगा, पीएगा या सांस लेगा । उसकी सारी क्रियाएं योग बन जाएंगी । चलना गमनयोग हो जाएगा । भोजन करना आहारयोग हो जाएगा । पानी पीना पानयोग हो जाएगा । श्वास लेना, छोड़ना भी श्वासयोग बन जाएगा । ये सभी योग साधना के घटक बन जाएंगे । इन सबका योग हो, अतियोग नहीं । मिथ्यायोग या अतियोग दोष हैं । सारे मिथ्यायोग अतियोग बन जाते है किन्तु जागरूकता के बढ़ने पर वे योग बन जाते हैं । प्रश्न है जागरूकता को बढ़ाने का । जब भीतर से जागरूकता फूटती है तब आदमी अपने आप सोचता है - यह नहीं खाना है, यह नहीं करना है । जागरूकता का अभ्यास नहीं होगा तो खाने-पीने की लालसा नहीं छूटेगी । मुक्ति या काम के परिष्कार का महत्त्वपूर्ण सूत्र है - जागरूकता का विकास । जो व्यक्ति अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक हो जाता है उसके जीवन के हर व्यवहार में जागरूकता आ जाती है । भीतर में जब आग प्रज्वलित हो है तब बाहर प्रकाश की रश्मियां आएंगी ही। वे रश्मियां एक ही दिशा में नहीं फैलेंगी । उसके बोलने में भी जागरूकता बढ़ेगी । उसके मुंह से फिर कोई अपशब्द नहीं निकल सकेगा । हाथ भी उठेगा तो जागरूकता के साथ । वह कभी चांटा नहीं मार सकेगा, हाथ का दुरुपयोग नहीं कर सकेगा । देखेगा तो भी पवित्र दृष्टि के साथ । उसमें दृष्टि का दोष धुल जाएगा । उसमें से अत्यन्त पवित्र धारा बहेगी प्रेम की । सोएगा तो सपने नहीं लेगा । सपने भी आएंगे तो जगाने वाले सपने आएंगे, हैरान करने वाले सपने नहीं आएंगे । ऐसे भी सपने होते हैं, जो यथार्थ को प्रगट करने वाले होते हैं । हमारा ज्ञान जागृत अवस्था में ही सच्चा नहीं होता, वह स्वप्न में भी सच्चा होता है । भगवान महावीर ने कहा -- जो संवृत अनगार होता है उसके स्वप्न यथार्थ होते हैं । वह सत्य स्वप्न ही देखता है, मिथ्या और काल्पनिक स्वप्न नहीं देखता । उसकी स्वप्न अवस्था और जागृत अवस्था में कोई अन्तर नहीं होता । काम - परिष्कार से जीवन की सारी दिशाएं बदल जाती हैं, सारा जीवन प्रकाशमय हो जाता है । ऐसा जागरूक जीवन जीना, केवल संन्यासी के लिए ही संभव नहीं है, एक गृहस्थ भी इन साधना सूत्रों का आलम्बन लेकर साधना का जीवन जी सकता है, साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है और परिष्कार में निष्णात हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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