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________________ २४ अवचेतन मन से संपर्क अज्ञानी हैं, जानते हुए भी वे मूर्छा का जीवन जी रहे हैं। वे अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक नहीं हैं, मुक्ति के प्रति जागरूक नहीं हैं और अपने अस्तित्व के प्रति भी जागरूक नहीं हैं। यह साधना बहुत दुर्गम साधना है। गृहस्थी में रहता हुआ कोई पदार्थों को छोड़ दे, यह संभव नहीं है। कैसे कोई व्यक्ति समाज का जीवन जीता हुआ, गृहस्थी में रहता हुआ, पदार्थों के बिना जीवन जी पाएगा? कैसे वह परिवार में जी सकेगा? कैसे कपड़े और अन्य साधनों के बिना जीएगा? कैसे आजीविका के बिना जीवन-यापन करेगा? सब भिखारी नहीं बन सकते। भिखारी बनने के लिए भीतर से भिखारी बनना होता है । भिखारी-जीवन एक अपराध है । सामाजिक व्यक्ति वैसा जीवन नहीं जी सकता । उसे पदार्थों का अर्जन करना होता है। फिर प्रश्न वही आ गया कि आदमी पदार्थों का अर्जन करेगा तो वह पदार्थों से बंधेगा और वह अर्थ के साथ जुड़ेगा। इस स्थिति में क्या वह उद्देश्य से नहीं भटक जाएगा ? यह द्वन्द्व-सा लगता है, पर वास्तव में यह द्वन्द्व नहीं है। हमारी दृष्टि बहुत स्पष्ट होनी चाहिए कि पदार्थ को भोगना है और अस्तित्व के प्रति जागरूक रहना है । इन दोनों में संघर्ष नहीं है । ये दोनों साथ चल सकते हैं, अन्तिम बिन्दु तक साथ चल सकते हैं। जब मुक्ति का क्षण आता है तब ये अलग हो जाते हैं। उस बिन्दु तक ये साथ रह सकते हैं। कुछ लोग बाह्य दृष्टि के आधार पर उलझ जाते हैं। वे सोचते हैं, पदार्थों का उपयोग करते हुए मुक्ति कैसे हो सकती है ? यह संभव नहीं है । क्योंकि पदार्थों को छोड़ा नहीं जा सकता और उनको छोड़े बिना मुक्ति नहीं हो सकती । पर सोचना है कि पदार्थ बाधक कब बनते हैं ? पदार्थ बाधक तब बनते हैं जब आदमी की जागरूकता कम होती है। हम पदार्थों में न उलझें, उनके उपयोग में न उलझें । हम भीतर की यात्रा शुरू करें, अपनी जागरूकता को बढ़ाएं । जैसे-जैसे हमारी जागरूकता बढ़ेगी, वैसे-वैसे हम अपने उद्देश्य के प्रति, लक्ष्य के प्रति सावधान होंगे, उसके अनुरूप बनेंगे और उस अखण्ड ज्योति के साथ हमारा तार जुड़ जाएगा। उस प्रकाश से हमारा पूरा जीवन प्रकाशित हो उठेगा, कोई समस्या और द्वन्द्व नहीं रहेगा। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग जागरूक होने का प्रयोग है। रोटी खाना, पानी पीना, सांस लेना-व्यक्ति का अस्तित्व नहीं है पर इन सबको नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि जीवन-यात्रा पदार्थ के बिना चल नहीं सकती। सांस प्रतिक्षण लेना होता है । रोटी-पानी के बिना तो कुछ दिन रहा जा सकता है, पर सांस के बिना नहीं रहा जा सकता। रोटी-पानी के बिना भी दिन में तारे दीखने लग जाते हैं। बड़ी मुसीबत हो जाती है । प्रेक्षा से यह बोध प्राप्त होता है कि हम अपने अस्तित्व के प्रति जाग जाएं। जो अपने अस्तित्व के प्रति जाग जाता है, वह रोटी, पानी और सांस के प्रति भी जाग जाता है। फिर वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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