SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवचेतन मन से सम्पर्क प्रत्येक व्यक्ति सफलता का जीवन जीना चाहता है, विकास करना चाहता है, किन्तु यह जीवन की नियति है कि सफलता और असफलता, विकास और अविकास — दोनों साथ-साथ चलते हैं । इसका मूल कारण, जो मुझे लगता है, वह यह है कि हमारा अपने मूल व्यक्तित्व के साथ संपर्क नहीं है । हम अपने आपको जानते हैं पर पूर्णतः नहीं जानते । हमारे व्यक्तित्व का जो ऊपरी भाग है, उससे हम खूब परिचित हैं, किन्तु हमारे व्यक्तित्व का जो भीतरी भाग है, सूक्ष्म भाग है, उसे हम नहीं जानते । अखंड व्यक्तित्व के विकास के लिए ज्ञात और अज्ञात - दोनों को जानना होता है । मनोविज्ञान ने जब मस्तिष्क की त्रि-आयामी व्याख्या प्रस्तुत की, तब अज्ञात को जानने का अवसर मिला । चेतन और अवचेतन मन से हम परिचित हैं। दोनों संबद्ध हैं । कभी चेतन मन अवचेतन मन में बदल जाता है और कभी अवचेतन मन चेतन मन में परिवर्तित हो जाता है । दोनों मिले जुले हैं । किन्तु अचेतन मन की कल्पना नये रूप में प्रस्तुत हुई है । इस अनकोन्शियस माइंड के विषय में फ्रायड ने जो कुछ कहा, वह नई बात थी और संभवत: आज भी वह नई मानी जाती है । उसने कहा - व्यक्ति की जो दमित वासनाएं और इच्छाएं हैं, वे अचेतन मन का रूप ले लेती हैं और फिर हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करती रहती हैं। मनुष्य के आचरण और व्यवहार को समझने के लिए मनोविज्ञान में अचेतन मन को बहुत महत्त्व दिया जाता है । यह अंतिम बात नहीं है । परन्तु आज का भारतीय विद्यार्थी भारत की प्राचीन परम्परा को नहीं जानता, इसलिए वह अवचेतन मन पर आकर रुक जाता है । उसे व्यक्तित्व की पूरी व्याख्या नहीं मिलती, व्यवहार और आचरण का पूरा विश्लेषण उपलब्ध नहीं होता । केवल दमित वासनाएं और इच्छाएं ही हमारे व्यक्तित्व को प्रेरित करती हैं, यह बात अधिक तथ्यपूर्ण नहीं है । भारतीय दार्शनिक ने सूक्ष्म शरीर की बात बताई । यदि सूक्ष्म शरीर का हम अध्ययन करते तो और आगे बढ़ जाते, व्यवहार तथा आचरण की कई गुत्थियां सुलझ जातीं । आदमी का स्थूल या दृश्य शरीर ही सब कुछ नहीं है । इसके भीतर सूक्ष्म शरीर विद्यमान है । हम उसे कर्म - शरीर कहें, संस्कार- शरीर कहें या वासना शरीर कहें, वह भीतर विद्यमान हैं । आदमी की प्रत्येक प्रवृत्ति, चिन्तन और आचरण का उसमें प्रतिबिम्ब होता है, अंकन होता है। जब-जब वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy