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अवचेतन मन से संपर्क
दृष्टान्त दिया
चार व्यक्तियों ने मिलकर एक गाय खरीदी । गाय एक, मालिक चार । एक व्यक्ति के घर पहले दिन गाय रही। उसने गाय को दुहा । दोनों समय दूध निकाला पर चारा नहीं डाला । उसने सोचा---गाय तो मेरे पास आज-आज है। मैंने दूध तो निकाल लिया। मेरा काम हो गया। कल जो दूध निकालेगा, वह अपने आप गाय को खिलाएगा, पिलाएगा, मैं क्यों चिन्ता करूं? दूसरे दिन गाय दूसरे के घर पहुंचा दी। उसने भी गाय को दुहा पर जब चारापानी डालने की बात आई तब उसके मन में भी वही तर्क जागा । उसने सोचा, कल तो खाकर आई है, फिर कल इसे खाने को मिलेगा ही। मैं आज इसे न खिलाऊ-पिलाऊं तो क्या अंतर आएगा ? उसने चारा-पानी नहीं दिया। गाय दो दिन भूखी-प्यासी रही। तीसरे दिन तीसरे व्यक्ति के पास गाय गई। उसने दूध दुहना चाहा। बहुत कम दूध निकला, क्योंकि गाय दो दिन की भूखी-प्यासी थी। उसके मन में भी वही तर्क उठा । आखिर चेतना तो वही काम कर रही थी। उसने भी चारा-पानी नहीं दिया। चौथे दिन भी वही स्थिति रही। गाय ने दूध देना बंद कर दिय।।
चारों में एक ही चेतना काम कर रही थी । स्वार्थ इतना प्रबल हो गया कि चारों स्वार्थ में अन्धे हो गए। उन्होंने यह नहीं सोचा कि खाए-पिए बिना गाय दूध कैसे देगी ? अहित या अलाभ किसके होगा ? स्वार्थांध आदमी अपने स्वार्थ को भी नहीं देखता । जो स्वार्थी होते हैं, वे सचाइयों को जानते हुए भी नहीं जान पाते । यही तो हमारी अविद्या है । अविद्या का तात्पर्य है-देखते हुए भी न देखना, जानते हुए भी न जानना ।
जो लोग केवल प्रवृत्ति में विश्वास करते हैं, परिणाम में विश्वास नहीं करते, वे हमेशा आंखमिचौनी करते रहते हैं। वे प्रवृत्ति को ठीक देख लेते हैं पर परिणाम का चिंतन नहीं करते। प्रवृत्ति सुखद हो सकती है, पर परिणाम दुःखद हो सकता है । प्रवृत्ति दुःखद हो सकती है पर परिणाम सुखद हो सकता है । स्वार्थ में जीने वाला व्यक्ति प्रवृत्तिवादी होता है। वह केवल प्रवृत्ति पर ध्यान देता है, परिणाम को नजरअन्दाज कर देता है। वह प्रवृत्ति को परिणाम के आधार पर नही आंकता।
आज का संसार भयाक्रान्त है । वह सोचता है, जब तीसरा महायुद्ध होगा तब कुछ भी नहीं बचेगा । महाप्रलय हो जाएगा । आज के वैज्ञानिकों ने ऐसी गैसें, रसायन आदि आविष्कृत किए हैं कि उस महाप्रलयंकारी युद्ध में आदमी तो एक भी नहीं बच पाएगा पर चीजें ज्यों की त्यों सुरक्षित रह जाएंगी। मकान सुरक्षित, अनाज सुरक्षित, सोना-चांदी सुरक्षित, सब पदार्थ बच जायेंगे किन्तु प्राणी एक भी नहीं बचेगा। बात बड़ी बुद्धिमत्ता की है। आज के आदमी में चाहे फिर वह वैज्ञानिक ही क्यों न हो-पदार्थ की चेतना
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