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अवचेतन मन से संपर्क
मांगता हूं, न संतान, न परिवार और न वैभव । मैं आपसे केवल यह चाहता हूं कि मेरी दृष्टि ऐसी निर्मल बने, जिससे मैं यथार्थ को देख सकू, जो जैसा हो, उसको वैसा देख सकूँ।'
यह मांग बहुत बड़ी मांग है, अद्भुत मांग है, जो शायद बहुत कम भक्तों ने मांगी हो । अधिकांश लोग तो यही मांगते हैं कि बीमारी मिट जाए, संतान हो जाए, धन मिल जाए, कोई मेरे पक्ष में हो जाए। परन्तु ऐसी मांग करने वाला भक्त विरल ही होता है कि मेरी दृष्टि निर्मल बन जाए और मैं यथार्थ को यथार्थ की दृष्टि से देख सकू। प्रेक्षा का प्रयोग उस मांग को पूरी करने वाला प्रयोग है।
कुछ लोग नमक खाते हैं, कुछ लोग नहीं खाते । नमक खाने वाले भोजन के स्वादिष्ट होने या न होने का आरोपण करते रहते हैं । नमकयुक्त भोजन स्वादिष्ट होता है। जो नमक नहीं खाता, उसके लिए स्वाद-अस्वाद कुछ भी नहीं रहता। जो भोजन की प्रेक्षा करना सीख जाता है, वह आरोपण से मुक्त हो जाता है। आदमी नहीं जानता कि गेहूं में कितना मिठास होता है ? कितना स्वाद होता है ? वह आरोपण से जानता है कि नमक है तो स्वादिष्ट है, अन्यथा नहीं। हम आरोपित को स्वादिष्ट मानते हैं, सहज को स्वादिष्ट नहीं मानते । आरोपण की बात प्रेक्षा से परे जाने की बात है। प्रेक्षा सहज प्रकृति है। प्राकृतिक चिकित्सकों ने एक बात कही---'प्रकृति उपचार करती है । औषधि लेने की जरूरत नहीं है ।' यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूत्र है। यह प्रेक्षा के निकट का सूत्र है परन्तु इस बात को समझने के लिए दृष्टि चाहिए।
एक आदमी सिरदर्द से पीड़ित है। वह तत्काल गोलियां लेगा और उससे छुटकारा चाहेगा । प्रेक्षा कहती है-दर्द के स्थान को देखो, दर्द क्यों हो रहा है, उसे देखो। गहराई से पांच-दस मिनट तक देखो, संभव है दर्द गायव हो जाएगा। यह परिणाम शत-प्रतिशत नहीं तो कम से कम ७०-८० प्रतिशत तो आ सकता है । प्रश्न होता है—देखने मात्र से दर्द कैसे गायब हो जाता है ? इसका भी बहुत स्पष्ट कारण है। दर्द होता है प्राणशक्ति के अवरोध के कारण । शरीर के जिस भाग में प्राणशक्ति का अवरोध होता है, वहां दर्द प्रारम्भ हो जाता है। गहराई से देखने पर वह अवरोध धीरे-धीरे मिटने लगता है और वहां पुनः प्राण-संचार प्रारम्भ हो जाता है। प्राण-संचार होते ही दर्द मिट जाता है।
यदि प्रेक्षा की बात, केवल देखने की बात समझ में आ जाती है तो जीवन में एक नई स्फूर्ति, नई प्रेरणा और नया आलोक आ जाता है, जीवन की सारी दिशा ही बदल जाती है।
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