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________________ बिम्ब : प्रतिबिम्ब १५१ दीखने लग जाता है । आदमी कल्पना करता है-पुराना चला जाएगा, नया आएगा पर वह मेरे अनुकूल होगा या नहीं ? वह सुखदायी होगा या दुःखदायी ? सेठ ने एक भिखारी को बुलाकर कहा-मैं तुम्हें अपना दामाद बनाना चाहता हूं। भिखारी राजी हो गया। दामाद होने का अर्थ था--अपार संपत्ति का स्वामी बनना । सेठ के कर्मचारियों ने उस भिखारी के भिक्षा पात्र को सड़क पर फेंक दिया। यह देखते ही भिखारी चिल्लाने लगा-मेरा भिक्षा पात्र, मेरा भिक्षा पात्र । सेठ ने सड़क पर फेंके हुए भिक्षा पात्र को मंगाया और उसके सामने रख दिया। वह तत्काल शान्त हो गया। कैसी विसंगति है ? एक ओर वह भिखारी सेठ का दामाद बनकर करोड़ों की संपत्ति का स्वामी बनने जा रहा है और दूसरी ओर वह टूटे फूटे भिक्षापात्र के लिए चिल्ला रहा है, रो रहा है । कारण यह है—भिक्षापात्र के साथ उसके संस्कार बहुत प्रगाढ़ हैं, उसके साथ अनेक स्मृतियां और कल्पनाएं जुड़ी हुई हैं। वह उन सबसे मुक्त हो नहीं पाता इसीलिए वह चिल्लाता है, रोता है। हम पूरे जीवन का विश्लेषण करें तो ज्ञात होगा कि जितनी दु। ‘ताएं, मानसिक कठिनाइयां, मानसिक समस्याएं, जो अशान्ति पैदा कर रही हैं, वे सारी परिस्थिति-जन्य नहीं हैं। हमने परिस्थितियो पर केवल आरोपण कर दिया है। हमने हर अशांति के लिए जिम्मेवार बना लिया दूसरे व्यक्ति को किन्तु ये सारी की सारी कठिनाइयां हमारा ही प्रतिबिम्ब हैं । हमारी वासनाओं का प्रतिबिम्ब हैं । हमारे मन की वासनाए सामने आती हैं और अशांति पैदा कर देती हैं । तब हमें कोई न कोई दूसरा बहाना खोजना पड़ता है और हम उसका आरोपण दूसरे पर कर देते हैं। आचार्य भिक्षु ने 'शील की नवबाड़' ग्रन्थ में लिखा है---एक व्यक्ति खाने का शौकीन था । रस लोलुपता के कारण एक दिन उसने डटकर खा लिया। अजीर्ण हो गया। पेट में दर्द सताने लगा। घरवालों ने वैद्य को बुलाया । वैद्य ने कारण जानना चाहा । अब वह कैसे कहे कि यह सारी गड़बड़ अधिक खाने से हुई है। वैसा कहने पर दुर्बलता प्रकट होती है । कोई भी आदमी अपनी दुर्बलता दूसरों के समक्ष प्रकट करना नहीं चाहता। अपनी विशेषता ही दिखाना चाहता है। आदमी अपनी दुर्बलताओं को स्वीकारना भी नहीं चाहता। वैद्य के पूछने पर वह कहता है---आज मौसम खराब है, इसलिए गैस ज्यादा बन गई और पेट में दर्द होने लग गया। कितना आश्चर्य ! इतना खा लिया कि वायु के संचरण के लिए स्थान ही नहीं रहा । उसने आरोपण कर दिया परिस्थिति पर । प्रेक्षा का उद्देश्य है कि यथार्थ को देखो, जो जैसा है, उसको वैसा स्वीकार करो। एक भक्त ने भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा-'मैं आपसे न धन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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