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अवचेतन मन से सम्पर्क
भगवान् पर भरोसा क्यों नहीं है ? झूठे हो तुम । चलो जाओ यहां से ।' पुजारी अपना-सा मुंह लेकर चलता बना ।
यह सारा अपरिष्कृत कामना का परिणाम है । सारी प्रवंचनाएं छलनाएं और ठगाइयां अपरिष्कृत काम या इच्छा से पैदा होती हैं । जब कामना का परिष्कार होता है तब आदमी में ठगने की भावना नहीं होती, विसर्जन की भावना, देने की भावना जाग जाती है । वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु का भी विसर्जन कर देता है ।
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एस्किमो जाति, जो ध्रुव प्रदेश में रहती है, को काम परिष्कार के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है । उनकी कामना इतनी परिष्कृत है कि पदार्थ के प्रति उनकी मूर्च्छा नहीं के समान है । दूसरों को प्रिय लगने वाले वस्तु का विसर्जन करने में वे कभी पीछे नहीं रहते । उनका पहला तर्क है - हम वस्तु को भोग चुके हैं । अब इसके प्रति मन में कोई आकर्षण नहीं बचा है । जिनके मन में आकर्षण है, वे इसे भोगें । दूसरा तर्क है - 'संपत्ति पर व्यक्ति का अधिकार नहीं होता, समाज का अधिकार होता है, पूरी मनुष्य जाति का अधिकार होता है । जैसे यह वस्तु हमारी है, वैसे ही यह तुम्हारी है । तुम इसका उपयोग करो ।'
यह है परिष्कृत कामना का विचार । कामना के परिष्कृत होने पर ठगने, लूटने या हड़पने की भावना समाप्त हो जाती है ।
महाकवि माघ की यह सर्वविदित प्रकृति थी कि जब कोई व्यक्ति याचना कर लेता तो वे बिना दिए नहीं रहते । जो वस्तु उनके पास होती, मांग करने वाले को वह निश्चित ही मिल जाती । पंडित थे । सरस्वती
प्रिय पुत्र | लक्ष्मी का वरदान प्राप्त नहीं था । काव्य-रचना से कुछ मिल जाता पर दान की इस प्रवृत्ति ने उन्हें भयंकर गरीबी में ला पटका ।
एक बार एक व्यक्ति आकर बोला- 'पंडित प्रवर ! लड़की का विवाह करना है । पैसा नहीं है पास में। आप ही लज्जा रख सकते हैं ।'
कवि माघ ने सोचा - अब क्या दूं ? पास में फूटी कौड़ी भी नहीं है । इसकी मांग कैसे पूरी करूं ? उन्होंने इधर-उधर देखा । देने योग्य कोई भी वस्तु नहीं मिली । अचानक उनकी दृष्टि अपनी पत्नी पर जा टिकी । वह सो रही थी । उसके हाथ में स्वर्ण- कंगन थे । माघ कवि चुपके से वहां गए । धीरे से एक हाथ का कंगन निकाला । पत्नी जाग गई। उसने जान लिया -- कोई न कोई याचक आया है । वह तत्काल बोली - यह दूसरा कंगन और ले जाओ । एक कंगन से क्या होगा ?
यह है कामना का परिष्कार । जब यह घटित होता है तब व्यक्ति का मनोभाव बदल जाता है, उदारता आ जाती है । जब काम शुद्धि घटित होती है तब साथ-साथ अर्थ-शुद्धि भी होती है ।
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