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________________ नैतिकता की आधारशिला : काम परिष्कार कामशुद्धि और अर्थ शुद्धि-दोनों अपेक्षित हैं। आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति में विषों का उपयोग होता है। उसमें पारद का भी उपयोग होता है और गंधक तथा संखिया का भी उपयोग होता है । अपरिष्कृत पारद, गंधक या सांखिया बहुत हानिकारक होता है। इनके सेवन से मृत्यु हो जाती है । इनका शोधन हो जाने पर ये उपयोगी बन जाते हैं। शोधन किया हुआ पारा, संखिया या गंधक मारने वाले नहीं, उबारने वाले बन जाते हैं । शोधन के पश्चात् इनकी विषैली शक्ति कम हो जाती है और इनकी उपयोगिता बढ़ जाती है। काम और अर्थ का परिष्कार हो जाने पर शक्ति में परिवर्तन आ जाता है। जितनी बुराइयां, अनैतिकता, अनाचार और अप्रामाणिकताएं होती हैं, वे सब अपरिष्कृत काम के कारण होती हैं । उनके मूल में काम है। काम परिष्कृत भी होता है और अपरिष्कृत भी होता है। एक व्यक्ति था विद्वान् और वैभवशाली । विद्या और लक्ष्मी का योग कम मिलता है, पर वह विद्यावान भी था और लक्ष्मीवान भी था । एक पुजारी उसके पास आकर बोला-पंडितवर ! आज रात को मुझे एक सपना आया । उसमें मैंने भगवान को देखा। उन्होंने मुझे कहा-जाओ, उस पंडित के पास और उसे कहो कि भगवान् का आदेश है कि दस हजार रुपए वह तुम्हें दे । उन रुपयों से नया मंदिर बनवाना है। इसलिए मैं आया हूं। आप मुझे रुपया दें और भगवद् आज्ञा का पालन करें। धनी पंडित ने सोचा-यह मुझे ठगने आया है और वह भी भगवान् के नाम पर ! भगवान् क्यों कहने आते नए मंदिर के निर्माण के लिए । पंडित ने कहा-पुजारीजी ! बात तो तुमने अच्छी कही । भगवान् का आदेश मानना ही होगा। रात भर विश्राम करो। मैं सोच लूं । प्रातःकाल जो कुछ होगा, देखा जाएगा। पुजारी रात भर वहीं रहा । सोचा, पंडित मेरी ठगाई में आ गया। रात बीती । प्रभात हुआ । पण्डित उठा । पुजारी आया । पण्डित ने कहापुजारीजी ! तुमने कल भगवान् का जो आदेश कहा था, वह ठीक था । आज रात को मेरे पास भी भगवान् आए। सपने में उनका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कहा-'सामने जो चबूतरा बना है, उसके नीचे दस हजार रुपए गढ़े हुए हैं । पुजारी को कहना कि वह उस चबूतरे को उखाड़ कर दस हजार रुपए ले ले और मंदिर बनवादे ।' पुजारी बोला---'पण्डितजी ! खुदाई करूं और रुपए न मिले तो क्या होगा ?' पण्डित ने कहा-लगता है, तुम्हें भगवान के दर्शन हुए ही नहीं । तुम्हें भगवान पर भरोसा ही नहीं है । जैसे तुमको भगवान कह गए हैं, वैसे ही मुझे भी कह गए हैं। जैसे तुम्हें अपने भगवान् पर भरोसा है, वैसे मेरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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