SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ নিন : সলিৰিৰ १४६ केसरिया मोदक को देखने की एक दृष्टि थी आचार्य की और एक दृष्टि थी मुनि सुव्रत की। दोनों देख रहे थे। आचार्य ने देखा-गरिष्ठ भोजन नहीं करना है। उपवास करना श्रेयस्कर है। न राग की वासना और न द्वेष की वासना । एक दृष्टि थी मुनि सुव्रत की। आकांक्षा, लालसा, विह्वलता। वह पागल हो गया । प्रत्येक दृष्टि और प्रेरणा के पीछे दो प्रकार की वासनाएं काम करती हैं। प्रेक्षा ध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति उस दृष्टि या दर्शन को उपलब्ध होता है जहां केवल दर्शन होता है, देखना होता है । उसके साथ कुछ भी जुड़ा हुआ नहीं रहता। यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है । हजार संपदाएं मिल सकती हैं, हजार प्रकार के वैभव मिल सकते हैं किन्तु शुद्ध दृष्टि का मिलना दुर्लभ है। बहुत कठिन बात है कि वासनामुक्त दृष्टि उपलब्ध हो । केवल देखने की शक्ति को जगा पाना महान् जागृति है । घर में पिता अपने पुत्र को देखता है। वह या तो यह देखता है कि पुत्र मेरे अनुकूल है, मुझे प्रिय है। या वह यह देखता है कि पुत्र उदंड है, अविनीत है, अप्रिय है । वह पुत्र को केवल पुत्र की दृष्टि से बाद में देखेगा और प्रिय या अप्रिय की दृष्टि से पहले देखेगा। सास बहू को इस दृष्टि से देखती है कि यह मेरा सारा काम करती है, मेरी आज्ञा का पालन करती है तो प्रिय है और यदि काम नहीं करती, क्रोध करती है तो अप्रिय है। सास भी बहू को बहू की दृष्टि से नहीं देखती किन्तु अपने स्वार्थ की दृष्टि से देखती है । कहा जा सकता है कि प्रत्येक दर्शन के साथ हमारी कोई न कोई वासना जुड़ी हुई रहती है । इसलिए यह सही है कि मनुष्य का कभी मूल्यांकन नहीं होता, मूल्यांकन होता है वासना का, स्वार्थ का और साथ में जुड़ी हुई भावनाओं का। इन आधारों से होने वाला मूल्यांकन सही नहीं हो सकता । उसे जो स्थान मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता । कोई भी आदमी आदमी को आदमी की दृष्टि से नहीं देख सकता । वह उसको और-और दृष्टियों से देखता है। प्रेक्षा ध्यान की पद्धति दर्शन की पद्धति है। दर्शन का अर्थ हैसाक्षात्कार, शुद्ध दृष्टि, केवल देखना । जब हम वासनात्मक दृष्टि से देखते हैं तब मनुष्य का भी यथार्थ बोध नहीं हो पाता तो सुक्ष्म सत्यों की उपलब्धि कैसे हो सकती है ? सूक्ष्म सत्य को हम कैसे पकड़ सकते हैं ? सारे दरवाजे बन्द हो जाते हैं। दर्शन है--शुद्ध चेतना का प्रयोग-जब हमारी चेतना वस्तु का निर्णय करे, व्यक्ति या विषय का निर्णय करे तब वह यथार्थ का निर्णय करे, जो जैसा है, उसको उस दृष्टि से देखे। क्या हमारी दृष्टि शुद्ध है कि हम जो जैसा है, उसको उस दृष्टि से देख सकें ? देखने के साथ-साथ या उसके पहले हमारी वासनाएं आ जाती हैं और तब वासनाओं के माध्यम से ी हम किसी को देख पाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy