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________________ १४० अवचेतन मन से संपर्क बायीं जांघ पर तिल है ? यह चित्रांकन स्वयं उसके चरित्र पर एक प्रश्नचिह्न उपस्थित करता है। राजा अनेक संकल्प-विकल्पो में उलझा और क्रोध भी बढ़ता गया। उसने चित्रकार को एकान्त में बुलाकर पूछा-सच-सच बताओ, तुमने यह यथार्थ चित्रांकन कैसे कर डाला ? तुमने महारानी का यह तिल कब-कैसे देखा था ? चित्रकार ने राजा की भावना समझ ली। उसने कहा-महाराज ! क्षमा करें। मेरे पास ऐसी विद्या है कि किसी के शरीर का एक अंश देख कर मैं पूरे शरीर का यथार्थ चित्रांकन कर सकता हूं। एक बार मैंने महारानी के पैर के अंगूठे को देखा था। उसी अंगूठे के आधार पर मैंने यह पूरा चित्र बनाया है। राजा ने इस बात पर विश्वास नहीं किया। रानी पर उसका अविश्वास बढ़ता गया। साथ ही साथ चित्रकार के शील पर उसे पूरा सन्देह हो गया। चित्रकार ने कहा-राजन् ! यदि आप मेरे कथन पर विश्वास नहीं करते हैं तो मैं तत्काल परीक्षा देने के लिए तैयार हूं। राजा ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। एक दासी को चार परदों के पीछे खड़ा कर दिया। उसके पैर का अंगूठा मात्र दीख रहा था। चित्रकार ने देखा । तत्काल उसने तूलिका से रेखांकन किया। रंग भरे और चित्र तैयार हो गया। राजा ने देखा, यह चित्र हूबहू उसी दासी का है और इसमें सूक्ष्मतम रेखाएं अंकित हैं। परन्तु राजा का कोप शांत नहीं हुआ। उसने आवेश में आकर चित्रकार का अंगूठा कटवा दिया। चित्रकार का मन प्रतिशोध से भर गया। राजा के अन्याय को वह सह नहीं सका । उसने मुगावती रानी का एक सुन्दरतम चित्र बनाया और उसे उज्जैनी के सम्राट् चण्डप्रद्योत के पास ले गया। चण्डप्रद्योत कामुक राजा था। उसने मृगावती का चित्र देखा, मुग्ध हो गया और शतानीक की राजधानी पर आक्रमण कर डाला। चण्डप्रद्योत अत्यन्त शक्तिशाली राजा था । उसका सैन्य बल विपुल था। शतानीक आक्रमण की बात सुन अतिसार के रोग से ग्रस्त होकर मर गया। भय से मृत्यु हो गई। अब हम इस घटना का निष्कर्ष निकालें। राजा की मृत्यु का कारण क्या बना? शांति भंग क्यों हुई ? राजा ने आक्रमण क्यों किया? चंडप्रद्योत के मन में एक तरंग उठी, चित्र उसका निमित्त बना और उसने युद्ध छेड़ दिया, शांति भंग हो गई। चित्र को देखकर सबसे पहले राजा चंडप्रद्योत की शांति भंग हुई। उसकी कामवासना उभरी और वह चंचल हो उठा । एक व्यक्ति की ही शांति भंग नहीं हुई, पूरे राज्य की शांति भंग हो गई, कौशांबी का राजा मृत्यु को प्राप्त हुआ और कौशांबी अनाथ बन गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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