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अनेक रोग : अनेक चिकित्सा
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है, शब्दों का उच्चारण करना है। यह कायोत्सर्ग से भी सरल है । यह किया जा सकता है।
इस प्रकार अनेक प्रयोग हैं-प्रेक्षा, कायोत्सर्ग, अनुप्रेक्षा। इस अभ्यासकाल में और-और भी प्रयोग चलते हैं। ये अनेक प्रकार के प्रयोग इसलिए चलते हैं कि बीमारियां अनेक हैं। किसी व्यक्ति में चंचलता अधिक होती है और किसी में वृत्तियों का उभार अधिक होता है। किसी में आहार की वृत्ति अत्यधिक उभर आती है और किसी में भय की वृत्ति उभर आती है। किसी में कामवासना की वृत्ति का प्रकोप होता है और किसी में लोभ की संज्ञा प्रबल होती है। ये सारी संज्ञाएं और वासनाएं विभिन्न प्रकार के क्षोभ पैदा करती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह शान्त रहे । योग का एक शब्द हैप्रशान्तवाहिता। आदमी निरन्तर प्रशान्ति के प्रवाह में बहना चाहता है। किन्तु वह शांत नहीं रह पाता। उसकी शांति को भंग करने वाली तरंगें उठती हैं और शांत समुद्र क्षुब्ध हो जाता है। ये संज्ञाएं और वासनाओं की तरंगें शांति को भंग कर देती हैं। जब कृष्ण, नील और कापोत लेश्या की तरंगें उभरती हैं तब भी शांति भंग हो जाती है।
मन की शांति, प्रशान्तवाहिता-यह तेजोलेश्या का कार्य है। जब तेजोलेश्या के प्रकम्पन प्रगट होते हैं तब आदमी शांत, प्रशांत और उपशांत हो जाता है। उस स्थिति में प्रशान्तवाहिता निरन्तर बनी रहती है। उसकी विच्छित्ति नहीं होती। परन्तु अप्रशस्त तीन लेश्याएं-कृष्ण, नील और कापोत-जब उठती हैं तब प्रशान्तवाहिता भंग हो जाती है, शांत जल क्षुब्ध हो जाता है । इसमें कोई अपवाद नहीं होता। चाहे व्यक्ति हो, समाज हो या राष्ट्र हो, शांति का भंग होता है इन अप्रशस्त तरंगों के द्वारा । उस स्थिति में शांति विक्षुब्ध हो जाती है।
कोशांबी का राजा शतानीक बहुत शक्तिशाली राजा था। उसके मन में चित्रशाला बनाने का संकल्प उठा। उसने कुशल चित्रकारों को आमंत्रित किया। एक कुशल, सक्षम और प्रशिक्षित चित्रकार ने चित्रशाला का दायित्व अपने पर ले लिया। बुद्धि-कौशल, हस्त-कौशल और कल्पना-कौशल को नियोजित कर उसने कुछ ही समय में चित्रशाला का निर्माण पूरा कर डाला। राजा उसे देखने आया। चित्रशाला की भव्यता और सुन्दरता को देख वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने चित्रशाला के सभी कक्षों में जाकर चित्र देखे । कक्ष मनोमुग्धकारी थे। वह मध्य कक्ष में गया । द्वार के सामने पटरानी मृगावती का चित्रांकन था। उस चित्र को सूक्ष्मता से देखा । मुगावती की बायीं जंघा पर एक तिल का चिह्न अंकित है । यह देखते ही राजा का रोष बढ़ा। उसने सोचा, चित्रकार को कैसे ज्ञात हुआ कि रानी के
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