________________
१३६
अवचेतन मन से संपर्क
साहित्य, न कोई शोध या समीक्षा, न इतिहास, न गणित, न भूगोल, न विज्ञान-कुछ भी नहीं । केवल प्रयोग और केवल प्रयोग । प्रयोग के साधनशरीर, वाणी, श्वास और वर्ण (रंग)-ये सब हमारे पास हैं। बस केवल इनका प्रयोग करना है। कहां और कैसे प्रयोग करना है, यह सीखना पड़ता है। हमारे पास सब कुछ है। केवल अपेक्षा है सही संयोजना की। उनका कब, कहां, कैसे संयोजन किया जाए। जो व्यक्ति इनको जान लेता है, वह अपने भीतर की शक्तियों का, बिजली और रसायनों का सही संयोजन कर जीवन की अनेक समस्याओं को हल करना जान लेता है।
जीवन-विज्ञान की यह शिक्षा वर्तमान शिक्षा प्रणाली से सर्वथा भिन्न है । विद्यालयों की शिक्षा पुस्तकों के आधार पर होने वाली शिक्षा है और जीवन-विज्ञान की शिक्षा जीवन की पोथी के आधार पर होने वाली शिक्षा है। विद्यालयों में भाषा के आधार पर पदार्थनिष्ठ विषय पढ़ाए जाते हैं और जीवन-विज्ञान की शिक्षा में अपने दर्शन के माध्यम से, प्रेक्षा के माध्यम से जीवन के स्वनिष्ठ विषय पढ़ाए जाते हैं। वस्तुनिष्ठ शिक्षा में अनेक विद्याएं पढ़ाई जाती हैं, पर स्व का कोई पता नहीं चलता। आज की शिक्षा या विज्ञान की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इसमें वस्तु के विषय में बहुत बताया जाता है, पर अपने विषय में कुछ भी नहीं बताया जाता। जब केवल पदार्थ के विषय का ज्ञान होता है और अपने विषय का ज्ञान नहीं होता, तब विचित्र समस्याएं उभर आती हैं।
एक धनाढ्य सेठ के घर में अचानक आग लग गई। वह तेजी से फैलने लगी। पास-पड़ोस के लोग घर के सामान को निकालने लगे। सेठ सामान निकालने का निर्देश देता जा रहा था और लोग, नौकर-चाकर सामान बाहर निकाल रहे थे। घर की मूल्यवान् चीजें अग्नि में स्वाहा होने से बचा ली गई। सेठ इस बात से प्रसन्न हुआ-मकान जला तो जला पर सारी मूल्यवान् वस्तुएं सुरक्षित बाहर निकाल ली गई।
सेठानी बाजार गई हुई थी। आग की बात सुनकर वह दौड़ी-दौड़ी आई । सेठ ने कहा--घबराओ मत । सारी कीमती चीजें, आभूषण और कपड़े, सुरक्षित निकाल लिए गए हैं। सेठानी बोली-मेरा छोटा बच्चा अंदर सो रहा था, वह कहां है ? उसे निकाला या नहीं ? सेठ ने कहा-अरे ! गजब हो गया। उसका तो ख्याल ही नहीं रहा। उसने नौकरों से कहा । पर अब आग सारे घर में फैल चुकी थी। उसमें प्रवेश करने का साहस किसी में नहीं था। बच्चा जलकर भस्म हो चुका था। सेठ ने सारी मूल्यवान् वस्तुएं निकलवा लीं, पर उन वस्तुओं का उपभोक्ता आग में जलकर राख हो गया। भोक्ता जल गया और भोग्य वस्तुएं बाहर आ गई ।
आज के शिक्षा जगत् की भी यही स्थिति है। भोक्ता के विषय में या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org