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जीवन विज्ञान
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स्वामी के विषय में कोई जानकारी नहीं और पदार्थ के विषय में सूक्ष्मतम जानकारी दी जा रही है । परमाणु विस्फोट का पूरा विज्ञान पढ़ाया जाता है। उसकी निष्पत्तियों की शिक्षा दी जाती है, पर मनोबल को विकसित करने या चरित्र विकास की बात नहीं सिखाई जाती।
आज केवल वस्तुनिष्ठ शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है । उसके साथ स्वनिष्ठ शिक्षा भी अपेक्षित है । केवल पदार्थ का विज्ञान ही नहीं, किन्तु पदार्थ विज्ञान का जो ज्ञाता, द्रष्टा और स्वामी है, उसकी भी शिक्षा होनी चाहिए। जीवनविज्ञान की यह पद्धति पूरक पद्धति है। वस्तुनिष्ठ शिक्षा के साथ-साथ स्वनिष्ठ शिक्षा का उपक्रम है। दोनों प्रकार की शिक्षाओं का योग अर्थात् भाषा और गणित की शिक्षा के साथ जीवन विज्ञान की शिक्षा का योग अपेक्षित है, जिसकी निष्पत्ति होगी--बौद्धिक और शारीरिक बल के विकास के साथ-साथ मनोबल और चरित्रबल का विकास ।
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