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________________ १३२ अवचेतन मन से संपर्क प्रायोगिक ज्ञान कराया जाता है, प्रक्रिया बताई जाती है । पढ़ना और प्रयोग करना-ये दो बातें हैं । विज्ञान का विद्यार्थी केवल पढ़ता नहीं, साथ-साथ में प्रयोग सीखता है । जो बात केवल पढ़ी जाती है वह एक बार मन को छूती है, फिर मन से निकल जाती है । वह केवल हमारे स्थूल मन या मस्तिष्क तक पहुंचती है, किन्तु मस्तिष्क की सूक्ष्म परतों तक, अवचेतन मन तक नहीं पहुंच पाती। इस स्थिति में आदत नहीं बदलती। नैतिकता कोरे ज्ञान से फलित नहीं होती। नैतिकता का विषय पढ़ाने मात्र से कुछ नहीं होता । उसके साथ प्रयोग अपेक्षित होते हैं। प्रश्न है आदतों को बदलने का । आदतें इतनी जकड़ी हुई हैं, इतनी बंधी हुई हैं कि जब तक उनकी गांठ खोली नहीं जाती तब तक आदतों में परिवर्तन नहीं आ सकता । एक बार मथुरा के लोग भांग पीकर चले नदी को पार करने । उन्हें यमुना नदी पार कर गोकुल पहुंचना था। वे सब नौका में बैठे और नौका को खेने लगे। वे भांग के नशे में चूर थे । खूब तेजी से डांड को खेया। नौका खेते रहे । रात पूरी बीत गई। सोचा--अभी गोकुल नहीं पहुंचे। पौ फट गई । सामने एक शहर दिखाई दिया । वे बोले-अरे ! यह तो मथुरा जैसा ही शहर है । हम भटक गए । गोकुल छूट गया । वे तट पर उतरे । एक व्यक्ति से शहर का नाम पूछा। उसने मथुरा बताया। उन्होंने सोचा-अभी तक मथुरा में ही हैं । सारी रात चलते रहे, मथुरा नहीं छूटी, मथुरा में ही रहे । नशा उतरा । उन्होंने देखा-उनकी नौका जिस रस्से से बंधी पड़ी थी, वह रस्सा वैसे ही बंधा हुआ था। रस्सा नहीं खोला । नाव खेते रहे । रात भर श्रम किया । पहुंचे कहीं नहीं । जहां थे, वहीं रहे। हम कितना ही प्रयत्न करें, जब तक पुराने रस्सों को नहीं खोलते, लंगरों को नहीं हटा लेते, तब तक हमारी नाव आगे बढ़ने वाली नहीं है, पार जाने वाली नहीं है, कहीं पहुंचाने वाली नहीं है। ____ आदतों को बदलना जटिल कार्य है । हर आदत एक लंगर से बंधी हुई है । एक मजबूत रस्सी से बंधी हुई है। जब तक ये रस्से नहीं काट दिए जाते, तब तक आगे बढ़ने का, आदतों को बदलने का प्रश्न ही नहीं उठता । जीवन-विज्ञान के प्रयोग आदतों को बदलने के प्रयोग हैं, भाव परिवर्तन के प्रयोग हैं । जब भाव बदलता है तब आदत बदलती है और जब आदत बदलती है तब आचरण बदलता है और जब आचरण बदलता है तब व्यवहार बदल जाता है। प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षार्थी में ये दो धारणाएं स्पष्ट होनी चाहिए। पहली धारणा हो-आदमी बदल सकता है। दूसरी धारणा हो- विकास के लिए पद्धति अपेक्षित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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