________________
जीवन विज्ञान
१३१
इच्छा है । विद्यार्थी उच्छृंखल और उद्दंड है । और भी अनेक आरोप हैं विद्यार्थी पर । वे चाहते हैं, विद्यार्थी अच्छा बने, आत्मानुशासी बने, पर प्रश्न है कि क्या इस दिशा में प्रयत्न किया जा रहा है ? क्या इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उत्तर नकारात्मक होगा । इस स्थिति में यह कैसे आशा की जाए कि विद्यार्थी का मनोबल बढ़ेगा, चरित्रबल बढ़ेगा ? जब मनोबल और चरित्रबल बढ़ाने वाली कोई विद्या ही उन्हें नहीं पढ़ाई जा रही है तब उनका विकास कैसे होगा ?
बबूल का बीज वपन कर आम पाने की इच्छा करना नितान्त अज्ञान है | क्या बबूल का बीज बोने वाला कभी आम खा सकेगा ? बबूल का बीज बबूल को ही पैदा करेगा और आम का बीज आम को ही पैदा करेगा । आम से बबूल और बबूल से आम कभी पैदा नहीं हो सकता । नीम का बीज निबौली पैदा करेगा और गुलाब का पौधा गुलाब के फूल को पैदा करेगा । हमें इन सबके लिए अलग-अलग बीज बोने होंगे ।
जीवन-विज्ञान की शिक्षा का प्रयत्न नए बीजों के वपन का प्रयत्न है ।
यह वह बीज है, जिससे मनोबल और चरित्रबल के फल पैदा होते हैं । आज विद्यार्थी को अपने बारे में ज्ञान करने की कोई विद्या नहीं पढ़ाई जा रही है । संवेग सब में होते हैं। छोटे बच्चे में भी होते हैं । छोटा बच्चा भी गुस्सा कर लेता है पर गुस्से पर नियन्त्रण कैसे किया जाए ? वह नहीं जानता । उसके विषय में उसे कोई जानकारी नहीं है । जितने प्रकार के संवेग हैं, ये सब प्राणियों में होते हैं । ये प्राणीमात्र की मौलिक मनोवृत्तियां हैं । इन पर नियन्त्रण कैसे किया जाए ? इनको सीमित कैसे किया जाए ? यह हम नहीं जानते । कुछ बच्चों में हीनता की ग्रन्थि बन जाती है । जिन्हें साधन-सामग्री उपलब्ध नहीं है, उनमें हीनता की भावना पनपती है और जिन्हें सुविधाएं उपलब्ध हैं, उनमें अहंकार की ग्रन्थि बन जाती है । ये दोनों ग्रन्थियां मनोबल को क्षीण करती हैं । हीनता की ग्रन्थि से भय बढ़ता है, दीनता की वृत्ति जागती है और मनोबल टूट जाता है । अहंकार की ग्रंथि मन को उलझा देती है, तनाव पैदा करती है, मनोबल को क्षीण कर डालती है । ये दोनों तनाव पैदा करने वाली ग्रन्थियां हैं । तनाव से समस्याएं उलझती हैं, बच्चे का ठीक विकास नहीं होता, संतुलन नहीं होता । ये समस्याएं हर व्यक्ति के जीवन में पैदा होती हैं । जब तक इन समस्याओं के निपटने की शिक्षा नहीं दी जाती तब तक हम कैसे आशा करें कि उनका व्यवहार संतुलित और मृदु होगा ? वे शान्त होंगे, आत्मानुशासन से भरे-पूरे होंगे, व्यसन मुक्त होंगे, बुराइयों से बचने वाले होंगे ?
जीवन-विज्ञान की शिक्षा के द्वारा ये सारी बातें पढ़ाई जाती हैं और ster प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाता है। आदतों और भावों को बदल नाक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org