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________________ १३० अवचेतन मन से संपर्क जाओ । ये लहरें तुम्हारे लिए बाधक नहीं बनेंगी । तुम्हारी अकर्मण्यता तुम्हारे लिए बाधा उपस्थित कर रही है । पानी में लहरें उठती रहेंगी । कभी शान्त नहीं होंगी । मनुष्य जीवन जी रहा है । वह लहरों के साथ जीवन जी रहा है । परिस्थिति की लहरें और थपेड़ें कभी मिटने वाले नहीं हैं । ये उठते ही रहेंगे । किन्तु जिनमें शक्ति है, सहन करने की क्षमता है, वे लहरों के थपेड़ों को चीरकर आगे बढ़ जाएंगे, स्नान कर लेंगे। जो व्यक्ति परिस्थिति के थपेड़ों से डर जाते हैं, घबरा जाते हैं, वे तट पर बैठे रह जाते हैं । हम शक्ति का विकास करें । विकास का साधन है - शिक्षा | कुछ लोग अशिक्षित होते हैं उन्हें शिक्षा का मौका नहीं मिलता । वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते । कुछ लोग विद्यालयों में जाते हैं । उन्हें शिक्षा का अवसर मिलता है और वे शिक्षित हो जाते हैं । शिक्षा से विकास होता है, इसमें कोई संदेह नहीं । शिक्षा एक शक्तिशाली माध्यम है विकास का । प्रश्न होता है, विकास किसका करना है ? यदि हम अपने आसपास दृष्टिपात करें तो हमें ज्ञात होगा कि हमें चार बातों का विकास अवश्य करना चाहिए - १. शरीरबल का विकास ३. चरित्रबल का विकास ४. बुद्धिबल का विकास • मनोबल का विकास ये चार प्रकार के विकास बहुत आवश्यक हैं। ये चार विकास हो जाते हैं तब आर्थिक विकास और भौतिक विकास की संभावनायें बढ़ जाती हैं । भौतिक विकास और आर्थिक विकास करने के लिए जो शक्ति अपेक्षित होती है, वह इन चार प्रकार के विकासों से प्राप्त होती है । इनमें सबसे पहला है --- शरीरबल का विकास। शारीरिक बल के अभाव में आदमी न भौतिक विकास कर सकता है और न आध्यात्मिक विकास कर सकता है । इसी प्रकार मनोबल का विकास, चरित्रबल का विकास और बुद्धिबल का विकास भी जरूरी है । आज के इस युग में यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि क्या भाषा, भूगोल, गणित और तर्क की शिक्षा से ये चारों प्रकार के बलों का विकास हो रहा है ? इस पर हमें गहराई से चिन्तन करना होगा । आज के विद्यालयों में शरीर बल के विकास के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं । व्यायाम, खेलकूद आदि इसके साधन हैं । इनसे शरीर बल बढ़ता है । क्या आज के विद्यालयों की शिक्षा से मनोबल और चरित्रबल बढ़ता है ? इसका उत्तर बहुत अस्पष्ट है । भाषा, साहित्य, गणित, फिलासफी आदि के अध्ययन से बुद्धि का विकास होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है । पर इन विधाओं से मनोबल और चरित्रबल बढ़ता है, ऐसा नहीं लगता । आज के लोग कहते हैं- -आज विद्यार्थी में चरित्र नहीं है । उसका आचार-व्यवहार अच्छा नहीं है । उसमें न आत्मानुशासन है और न अध्यापक के अनुशासन में रहने की २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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