SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवचेतन मन से संपर्क - हमारी बुरी भावधारा ने ही तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ा है । जब भावशुद्धि होगी, विधायक भावधारा प्रवाहित होगी, तब ये सारे लाभ स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। . भावशुद्धि के द्वारा व्यक्ति का रूपान्तरण होता है और फिर समाज का भी रूपान्तरण हो जाता है । आज की सामाजिक समस्या यह है कि हम मूल की चिता नहीं करते, फूल पत्तियों की चिता करते हैं। हमें पतझड़ की जितनी चिंता है, उतनी चिन्ता नहीं है मूल के बिगड़ने की। हम समस्याओं को ऊपरी उपायों से सुलझाना चाहते हैं। वे सुलझती नहीं। एक बार वे सुलझती सी लगती हैं, पर आगे जाकर उलझ जाती हैं । पता नहीं, भारतीय लोगों ने उस स्वर्णिम सूत्र को क्यों भुला दिया, जिसका प्रतिपादन प्राचीन आचार्यों ने किया था। वह समस्या के समाधान का सूत्र था। आज हमारे समक्ष समस्या के समाधान का एकमात्र सूत्र है पदार्थ । पदार्थ का विकास करना, उसे बढ़ाना । पदार्थ के अतिरिक्त समस्या का कोई समाधान ही नहीं रहा । क्या धन में इतनी शक्ति है कि वह सारी समस्याओं का समाधान कर दे? हो सकता है, वह कुछेक समस्याओं का समाधान कर दे। उसमें शक्ति है । मैं उसे सर्वथा व्यर्थ नहीं बताता । वह रोटी, पानी, कपड़े की समस्या को हल कर देगा। वह समस्या एक बार दब जाएगी। पदार्थ का स्वभाव है कि वह समस्या का पूरा समाधान नहीं देता। वह समस्या को दबा देता है । मैं ऐकान्तिक बात नहीं कह रहा हूं कि पदार्थ सर्वथा अनुपयोगी है । उसका भी उपयोग है, मूल्य है। हमें उसकी उपयोगिता का सीमाबोध होना चाहिए । अमुक पदार्थ हमारे लिए कितना उपयोगी है । यह सीमाबोध बहुत आवश्यक है। आज का प्रत्येक व्यक्ति पदार्थ को असीम शक्ति-सम्पन्न मान बैठा है। यह विश्वास मिटना चाहिए। ध्यान का उद्देश्य है--सीमा विवेक का जागरण करना । पदार्थ की और चैतन्य की सीमा एक नहीं है। दोनों की भिन्न-भिन्न सीमाएं हैं। जहां मानसिक दुःख है, पागलपन है, भावनात्मक समस्याएं हैं, वहां पदार्थ काम नहीं देता । वहां केवल धर्म या ध्यान ही काम देता है । यह विवेक स्पष्ट हो जाना चाहिए। जब यह विवेक स्पष्ट होता है तब अनुशासन की शक्ति विकसित होती है। अनुशासन के बिना न व्यक्ति अच्छा हो सकता है और न समाज अच्छा हो सकता है। आरोपित अनुशासन से भी व्यक्ति या समाज बहुत दूर तक अच्छा नहीं रह सकता । जब तक व्यक्ति और समाज में स्वाभाविक अनुशासन न जाग जाए तब तक समस्याओं का स्थायी समाधान दुर्लभ है। इस दृष्टि से ध्यान की मूल्यवत्ता सर्वोपरि है । ध्यान के द्वारा केवल योगी ही नहीं बना जाता । उससे जीवन व्यवहार सुधरता है, इसलिए पूरे समाज को ध्यानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy