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________________ भाव और अध्यात्मविद्या १०७ कहां चली गई बुद्धि ? मिट्टी में घी डालू और उसका गारा बनाऊं ? कैसा पागलपन है ?' पत्नी बहुत उत्तेजित हो गई । वह बेचारा देखता रहा । वह परेशान हो गया। ___ वह दौड़ा-दौड़ा कबीर के पास आकर बोला-'महात्माजी ! मुझे क्या बना डाला? आत्मा का साक्षात्कार तो नहीं हुआ, एक राक्षसी से साक्षात्कार हो गया।' कबीर ने कहा- 'तुम आत्मा का साक्षात्कार करने चले हो ! जिस व्यक्ति का स्वयं पर अनुशासन नहीं है, वह परिवार पर अनुशासन नहीं कर सकता । जो परिवार पर अनुशासन नहीं कर सकता, वह आत्म-साक्षात्कार भी नहीं कर सकता।' आत्म-साक्षात्कार की पहली शर्त है-अपने पर अनुशासन । यह अनुशासन ध्यान के प्रयोग के बिना फलित नहीं हो सकता। धर्म का प्रयोग ध्यान का ही प्रयोग है । ध्यान और धर्म अलग-अलग नहीं हैं। ध्यान की पूरी प्रक्रिया भावशुद्धि की प्रक्रिया है । ध्यान का अभ्यास करने वाला भावशुद्धि का अभ्यास करता है । ध्यान का अभ्यास भावशुद्धि से किया जाता है और भावशुद्धि के लिए किया जाता है। भावशुद्धि के बिना किया जाने वाला अभ्यास मूल्यवान् नहीं होता । ध्यान प्रक्रिया के जितने आयाम हैं, उन सबका प्रयोजन एक ही है और वह है भावशुद्धि। इससे अन्यान्य लाभ भी होते हैं। स्वास्थ्य भी सुधरता है, बीमारी भी मिटती है, पर ये सब प्रासंगिक लाभ हैं। मुख्य है चैतन्य का अनुभव । जो व्यक्ति आसन आदि को केवल स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं, वे आसन की प्रयोजनीयता के मूल्य को कम कर देते हैं । आसन से स्वास्थ्य मिलता है, पर यह बहुत छोटा लाभ है। आचार्य भिक्षु का यह सिद्धान्त बहुत महत्त्वपूर्ण है-पुण्य के लिए धर्म मत करो। पुण्य के लिए किया जाने वाला धर्म बहुत छोटा हो जाता है, परमार्थ का नहीं रहता। धर्म करो केवल निर्जरा के लिए, केवल आत्मशुद्धि के लिए। उन्होंने कहा-खेती करने वाला किसान अनाज के लिए खेती करता है, घास-फूस के लिए नहीं। घास-फूस अनाज के साथ होने वाली चीजें हैं। जहां धर्म होता है, वहां पुण्य अपने आप होता है । पुण्य के लिए अलग से प्रवृत्ति करने की आवश्यकता नहीं है । ऐसी एक भी प्रवृत्ति नहीं है, जिसमें केवल अकेला पुण्य होता हो। वह होगा धर्म के साथ ही। यह एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक सूत्र है कि अध्यात्म को समझने वाला व्यक्ति जो भी आचरण करे, वह आत्मशुद्धि के लिए करे, निर्जरा के लिए करे, भावशुद्धि के लिए करे । स्वास्थ्य लाभ आदि अन्यान्य उपलब्धियां स्वतः होंगी। अध्यात्म से भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी मिलता है । ये सब प्रासंगिक फल हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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