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________________ भाव-प्ररिवर्तन और मनोबल जो परवशता बन जाती है। गर्मी सहन करने की भावना शिथिल हो जाती है, सहन करने की क्षमता नष्ट हो जाती हैं, उसका परिणाम कितना भयंकर होता है। साथ-साथ मनोबल भी टूट जाता है । हम आपातभद्र को बहुत मूल्य देते हैं, फिर चाहे परिणाम विरस ही क्यों न हो। पंखे की हवा आपातभद्र तो लगती है पर उसका परिणाम विरस ही होता है। ___अमेरिका का प्रसिद्ध उद्योगपति रस्क चाइल्ड निरंतर वातानुकूलित वातावरण में रहता था। घर, ऑफिस, कार, कारखाने-सभी वातानुकूलित थे। धीरे-धीरे वह बीमार रहने लगा। बीमारी बढ़ी । डाक्टर ने कहा- तुम प्रतिदिन तीन घंटा गर्म पानी में बैठा करो। उसने वैसा ही किया। कुछ दिनों के प्रयोग के पश्चात् उसे महसूस हुआ कि वह स्वस्थ है, स्फूर्ति आई है । उसने सोचा--दिन-रात वातानुकूलित में रहूं और केवल तीन घंटा गर्म पानी में रहकर स्वस्थ अनुभव करूं, इसके बदले यह अच्छा है कि मैं सारे वातानुकूलित सिस्टम को ही समाप्त कर दूं। उसने वैसा ही किया । वातानुकूलन हट गया । तीन घंटे गर्म पानी में बैठना भी छूट गया। प्रत्येक सुविधा एक प्रतिक्रिया पैदा करती है । मैं मानता हूं, आदमी सुविधा को छोड़ना नहीं चाहता, छोड़ नहीं सकता पर कष्ट सहने का अभ्यास नहीं छूटना चाहिए। वह बराबर बना रहे, वैसा प्रयत्न करना चाहिए । हम तो चाहते भी हैं कि शिविर में आने वाले साधकों को ध्यान के प्रयोगों के साथसाथ कष्ट सहने के प्रयोग भी कराए जाएं । गर्मी का मौसम हो । एक खिड़की वाले कमरे में ध्यान कराया जाए। न पंखा, न वातानुकूलन । पसीना आए तो आए, गर्मी लगे तो लगे। इस प्रकार के प्रयोगों से कष्ट सहने का अभ्यास बढ़ता है। . आज सैनिकों को गर्मी तथा ठंड सहन करने का अभ्यास कराया जाता है । भयंकर ठंड और भयंकर गर्मी वे सहन कर सकें, इसलिए उन्हें ठंडे या गर्म प्रदेशों में रखा जाता है। चीनी सैनिकों से भारतीय सैनिकों के हारने का एक कारण यह भी था कि भारतीय सैनिक हिमालय की भयंकर सर्दी को सहन करने में सक्षम नहीं थे। आज इसका व्यवस्थित प्रशिक्षण दिया जाता हैं। दूसरे महायुद्ध में जर्मनी के सैनिकों को अफ्रीका में लड़ना था । यूरोप की ठंड और अफ्रीका की गर्मी—दोनों में तालमेल नहीं था। तब जर्मन सैनिकों को वैसे कृत्रिम मकानों में रखा गया, जिनका तापमान अफ्रीका के तुल्य था। उन्हें वैसे मकानों में ही ट्रेनिंग दी गई। अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले वैज्ञानिकों को कितना प्रशिक्षण दिया जाता है । उस प्रशिक्षण में सहन करने की क्षमता को विकसित करने की मुख्यता रहती है । हर कोई व्यक्ति अंतरिक्ष की यात्रा नहीं कर सकता और यदि कोई करता हैं तो लौटकर नहीं आ सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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