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________________ १०० अवचेतन मन से संपर्क .. आज धार्मिक लोग भी कष्ट सहने से कतराते हैं । पदयात्रा भी कष्ट है, गर्मी भी कष्ट है, सर्दी भी कष्ट है । वे भी सुविधावादी बनते जा रहे हैं। - कहा गया--जो अहिंसा और सत्य की साधना करना चाहता है, जो अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की साधना करना चाहता है, यदि वह परीषहविजयी नहीं है, कष्टसहिष्णु नही है तो न अहिंसा सधेगी, न सत्य सधेगा, न अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य सधेगा। थोड़ी-सी समस्या आयेगी और अहिंसा, सत्य आदि कहीं रह जाएंगे। अपरिग्रह की भावना टूट जाएगी, ब्रह्मचर्य की बात छूट जाएगी। ___ कष्ट-सहिष्णुता के बिना जीवन में उदात्त धर्म की साधना नहीं की जा सकती । सारी उदात्तताएं, विशिष्टतायें कष्ट-सहिष्णुता के साथ जुड़ी हुई हैं । साधक को कष्ट-सहिष्णु बनना ही चाहिए। ध्यान की साधना करने वालों को कष्ट से विचलित नही होना चाहिए । कष्ट सहने का भी प्रशिक्षण होना चाहिए। जहां दो सौ व्यक्ति हों, वहां यदा-कदा अनेक प्रकार की कठिनाइयां आ सकती है। यदि व्यवस्थापक कठिनाइयां नहीं आने देते हैं तो यह उनकी व्यवस्था निपुणता है। किंतु कष्ट सहने का अवसर भी आना चाहिए । तभी साधकों की कसौटी हो सकती है। जैसे व्यवस्थापकों की कसौटी है कि व्यवस्था को कितनी निपुणता से बनाए रखते हैं, वैसे ही साधकों को यह कसौटी है कि व्यवस्था में कहीं न्यूनता होने पर वे कैसे उनको सहन करते हैं। प्रेक्षाध्यान की की उपसंपदा का संकल्प है-मैं 'प्रतिक्रिया विरति' का अभ्यास करूंगा । क्या कष्टों को सहन न करने वाला व्यक्ति प्रतिक्रिया नहीं करेगा? जो सहन करना नहीं जानता, वह प्रतिक्रिया से बच ही नहीं सकता । प्रतिक्रिया से वही व्यक्ति बच सकता है, जो कष्ट-सहिष्णु है, जिसमें सहिष्णुता का विकास हुआ है। . हमारी चेतना की बड़ी शक्ति है---सहिष्णुता । यह वह प्रज्वलित अग्नि है, लौ है, जिसके द्वारा जीवन आलोकित होता है । जिसमें कष्टों को सहन करने की चेतना नहीं जागती, उसके जीवन में प्रकाश नहीं हो सकता । जिसे प्रकाशी होना है, अपने जीवन को प्रकाश से भरना है, उसे कष्ट-सहिष्णु बनना ही ही होगा। कप्ट सहिष्णुता के साथ-साथ मनोबल का विकास भी स्वत: होता है। यह युक्तिकृत मनोबल है, युक्ति के द्वारा मनोबल को बढ़ाना है। एक व्यक्ति ने सांड को हाथों पर उठाने का संकल्प किया। वह उसी दिन जन्मे एक बछड़े को उठाने के अभ्यास में लग गया। प्रतिदिन वह बछड़े को उठाता । बछड़ा बड़ा होता गया और उस व्यक्ति की भार उठाने की शक्ति बढ़ती गई । एक दिन वह सांड उठाने में सफल हो गया। निरन्तर अभ्यास करने वाला व्यक्ति एक सांड को भी आसानी से उठा सकता है । इस प्रकार निरन्तर थोड़े-थोड़े कप्टों को भी सहने का अभ्यास करने वाला व्यक्ति कष्टों के पहाड़ को भी अपनी भुजाओं पर झेलने में सक्षम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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