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________________ भाव-परिवर्तन और मनोबल चना उछला हो। सामूहिक और पारिवारिक जीवन में एक दूसरे को सहन करना ही पड़ता है। आज सहन करना कोई नहीं चाहता। यही सबसे बड़ी समस्या है। असहनशीलता के कारण दिन-रात लड़ाइयां होती हैं, झगड़े और संघर्ष होते हैं । इस स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि सहिष्णुता का विकास हो किन्तु सहिष्णुता का विकास तभी सम्भव है जब मनोबल का विकास हो। . __ आयुर्वेद में मनोबल के तीन प्रकार बताये हैं-सहज, कालकृत और युक्तिकृत। ... कुछ व्यक्तियों को आनुवंशिकता से मनोबल प्राप्त हो जाता है । उसमें माता-पिता की विशिष्टता कारण है। माता-पिता मनोबली होते हैं तो पुत्र को भी मनोबल विरासत में मिल जाता है । इसलिए माता को गर्भावस्था में विशेष जागरूक रहना होता है । जो माता इस अवस्था में जागरूक नहीं होती, वह अपनी संतान को अंधकार में ढकेल देती है। जो माता इस अवस्था में जागृत रहती है, सावधान रहती है, वह अपनी संतान के लिए भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर देती है । माता-पिता के द्वारा जो मनोबल प्राप्त होता है, वह सहज मनोबल है। " दूसरे प्रकार का मनोबल है-कालकृत । यह अवस्था विशेष से संबंधित होता है। छोटे बच्चे का मनोबल बहुत दृढ़ नहीं होता। जब वही बच्चा युवावस्था को प्राप्त होता है तब मनोबल बढ़ जाता है । जब वही बूढ़ा होता है तब मनोबल लड़खड़ा जाता है, कमजोर हो जाता है । वृद्धावस्था में नियंत्रण शक्ति कमजोर हो जाती है । यह कालकृत मनोबल है। कालकृत का दूसरा अर्थ है--ऋतुकृत या समयकृत । अमुक-अमुक समय मनोबल बढ़ जाता है, घट जाता है। प्रकाश में मनोबल बढ़ जाता है और अन्धकार में घट जाता है । दिन में दो बार श्मशान घाट पर जाने वाला व्यक्ति भी रात में उस परिचित स्थान में जाने से घबराता है । ऐसा इसलिए होता है कि दिन में मनोबल बना रहता है, रात में घट जाता है। . मनोबल का तीसरा प्रकार है---युक्तिकृत मनोबल । उचित उपायों के द्वारा मनोबल को बढ़ाया जा सकता है । इसका तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति को सहज मनोबल प्राप्त न हो, वह निराश न बने । कृत्रिम उपायों के द्वारा मनोबल को विकसित किया जा सकता है । मनोबल बढ़ाने के अनेक उपाय हैं । संतुलित भोजन या उपयुक्त वनस्पतियों से भी मनोबल बढ़ सकता है। प्रेक्षाध्यान भी उसका साधन है । श्वासप्रेक्षा से एकाग्रता और संकल्पशक्ति का विकास होता है । उससे मनोबल बढ़ता है, सहन करने की क्षमता बढ़ती है। मनोबल बढ़े बिना सहन करने की क्षमता नहीं बढ़ती।। .. थोड़ा-थोड़ा कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सफलता का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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