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________________ भाव-परिवर्तन और मनोबल प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि शुद्ध भाव बना रहे, अशुद्ध भाव आए ही नहीं । परन्तु प्रकृति या नियति का यह चक्र है कि शुद्ध भाव कम रहता है और अशुद्ध भाव अधिक । इसको कैसे बदला जाए ? शुद्ध भाव निरंतर बना रहे, यह कैसे हो ? ___ शक्ति संपन्न व्यक्ति ऐसा कर सकता है। कमजोर आदमी कुछ भी नहीं कर सकता। वह मात्र दया की भीख मांग सकता है, दीन-हीन बनकर जी सकता है । आदमी शक्ति से संपन्न होता है-शरीर की शक्ति, मन की शक्ति और भावना की शक्ति । भाव परिवर्तन के लिये मन की शक्ति अधिक चाहिए, शारीरिक शक्ति कम चाहिए । शरीर बल से संपन्न, किन्तु मनोबल से क्षीण व्यक्ति बुराइयों में चले जाते हैं। ऐसे लोग भी देखे हैं, जो शरीर बल से क्षीण हैं पर मनोबल से संपन्न हैं, वे कभी बुरे कार्यों में नहीं फंसते । वे कृशकाय व्यक्ति बहुत बड़े-बड़े कार्य कर देते हैं। ___ महात्मा गांधी कृशकाय थे पर उनका मनोबल हिमालय से भी ऊंचा था। उनका एक वाक्य मुझे बहुत आकृष्ट कर गया--"मेरे मन में एक इच्छा है कि मैं किसी अच्छे कार्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान करूं, मर जाऊं। पर मेरे मन में कभी यह इच्छा नहीं जागती कि मैं किसी भी काम के लिए किसी को मारूं।" यह मनोबल के द्वारा ही संभव हो सकता है। मनोबली व्यक्ति ही सोच सकता है। अन्यथा सामान्य आदमी यही सोचेगा कि जो मुझे मारने आएगा, उसे मारकर मैं मरूंगा। मारने मरने की बात सोची जा सकती है । मारे विना मरने की बात नहीं सोची जा सकती। ___ जीवन चलाने के लिए शरीर-बल आवश्यक होता है। उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । किन्तु जीवन यात्रा को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए, जीवन में कुछ विशिष्टता संपादित करने के लिए आवश्यकता होती है मनोबल की। ___ आयुर्वेद में मनोबल के विषय में अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। आज के मनोविज्ञान में भी मनोबल के विषय में प्रचुर चिन्तन मिलता है। मनोबल तीन प्रकार का होता है-उत्तम मनोबल, मध्यम मनोबल और अल्प मनोबल। कुछ व्यक्ति उत्तम मनोबल से संपन्न होते हैं। उनका मनोबल प्रबल होता है। 'सत्त्ववान् सहते सर्वम्, संस्तभ्यात्मानमात्मना'-उत्तम मनोबल को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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