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अवचेतन मन से संपर्क
द्वारा आत्मा को देखें । यह आत्म-निरीक्षण की प्रक्रिया है । इसका उच्चारण सरल है, पर प्रयोग कठिन है, अभ्यास - साध्य है । अपने आपको देखना, अपने व्यक्तित्व को पहचानना सीधा काम नहीं है । अपने अन्तर्द्वन्द्वी व्यक्तित्व में बहने वाली दो विपरीत धाराओं को पहचानना बहुत जटिल कार्य है । औदयिक व्यक्तित्व एक दिशा की ओर ले जाता है और क्षायोपशमिक व्यक्तित्व दूसरी दिशा की ओर ले जाता है । इस अन्तर्द्वन्द्व को समेटना बहुत कठिन कार्य है । औदयिक का अर्थ है - चैतन्य का आवरण और क्षायोपशमिक का अर्थ है--- चैतन्य का अनावरण । एक शक्ति का अवरोधक है और दूसरा शक्ति का अभिव्यंजक है । दोनों हमारे भीतर हैं । आनन्द पर पर्दा डालने वाली धारा और अजस्र आनंद को प्रवाहित करने वाली धारा- दोनों भीतर विद्यमान हैं । हमें पूरी जागरूकता के साथ मन को एकाग्र कर अन्दर झांकना होगा कि यथार्थ में आंतरिक व्यक्तित्व कैसा है ? बाहर से स्वच्छ और सुन्दर दीखने वाला भी भीतर में कलुषित हो सकता है । गंगा का पानी उद्भव में स्वच्छ है पर चलतेचलते मटमैला और दूषित हो जाता है । जब आदमी अपने बाह्य और आंतfe व्यक्तित्व को सम्यक् प्रकार से जान लेगा तब वह उनमें संतुलन स्थापित करने की बात सोच सकेगा । केवल बाह्य व्यक्तित्व का ज्ञान भी पर्याप्त नहीं है और केवल आंतरिक व्यक्तित्व की पहचान भी पर्याप्त नहीं है । दोनों का समवेत ज्ञान ही अखंड व्यक्तित्व का ज्ञापक होगा और तब निर्णय करने में सुविधा होगी कि किसको कैसे बनना है । ध्यान के प्रयोग से व्यक्ति अपना आत्म निरीक्षण कर सके, अपने आपको पहचान जाए यह अपेक्षित है । पहचान का होना भ्रांति का मिटना है । यह बहुत मूल्यवान् है । यदि हम आत्म-निरीक्षण की प्रक्रिया को समझ सकें, अपने आपको देख सकें, जितने जितने अतिक्रमण हुए हैं, उनका प्रतिक्रमण कर सकें तो ध्यान योग की बहुत बड़ी सफलता हो सकती है ।
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बदलने की प्रक्रिया का पहला सूत्र है- आस्था - श्रद्धा | यह आस्था घनीभूत हो जाए कि आत्म निरीक्षण के द्वारा व्यक्तित्व का रूपान्तरण किया जा सकता है । यह 'फेथ हीलिंग' का प्रकार हैं । पाश्चात्य जगत् में 'फेथ हीलिंग' का प्रचलन है । मैं चाहता हूं, हमारे परिवर्तन की प्रक्रिया में भी फेथ - आस्था धनी - भूत हो । उससे रूपान्तरण अवश्य घटित होता है । पर आज का आदमी इतना अधैर्य पालता जा रहा है कि वह कहीं नहीं टिकता, बदलता रहता है । उसकी आस्था टिक नहीं पाती । वह सफल नहीं हो पाता ।
अध्यात्म के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग इस सचाई का अनुभव करें कि सफलता का पहला सूत्र है -आस्था |
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