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________________ मनोभाव की प्रक्रिया : भाव वशीकरण की प्रक्रिया है तभी सभी वृत्तियों का थोड़ा-थोड़ा परिष्कार होता है। सबको परिवर्तन की संविभागिता प्राप्त होती है। किन्तु जब शक्ति का सारा हिस्सा एक ही वृत्ति के परिवर्तन में लगता हो तब वह वृत्ति शीघ्र समाप्त हो जाती है, परिष्कृत हो जाती है । यह स्पेशेलाइजेशन की बात है । प्रत्येक कला में या विद्याओ में विशेषज्ञ होते हैं और वे उस शाखा के विशेष रहस्यों के ज्ञाता होते हैं। यही बात ध्यान के विषय में है । जब एक विशेष भाव के परिष्कार की बात आती है, तब विशेष प्रकार की ध्यान प्रक्रिया ही उसमें साधक बन सकती है। प्रत्येक समस्या के दो पहलू हैं-बाहरी और भीतरी। दोनों को देखने पर ही समाधान प्राप्त हो सकता है। जो केवल बाहर ही बाहर देखता है, उसमें ही अटक जाता है तो उलझनें पैदा हो जाती हैं। एक बड़ा व्यापारी था । करोड़पति था। एक दिन दो-चार व्यक्ति उसके पास आए। सेठ उनके रहन-सहन और बोलचाल से प्रभावित हुआ । आगन्तुकों ने कहा-सेठ साहब ! हमारे साथ ये जो सज्जन आए हैं, ये कन्नौज के बड़े व्यापारी हैं । करोड़ों की आय है । ये अपनी पुत्री की सगाई आपके लड़के से करना चाहते हैं। न जाने कब कैसे योग मिला कि लड़की ने लड़के को पसंद कर लिया है। सेठ साहब ! हमारे सेठजी चाहते हैं कि लड़की का दहेज करोड़ों में हो। आपकी जो वार्षिक आय है, उससे पांच गुना धन ये दहेज में देंगे । आप सोचें और हमें स्वीकृति दें। सेठ का मन लालच से भर गया। उसने कहा--यह रिश्ता मुझे मंजूर है। दहेज की कोई बात नहीं है, जो कुछ देना चाहें, दें। मेरे तो साल की एक करोड़ की आय है। आगन्तुकों ने कहा-सेठ साहिब ! अब आप यहीं बैठें। आपके सारे बही-खाते यहां मंगवा लें । हम इन्कमटेक्स के अफसर हैं । बहुत दिनों से आप सरकार की आंखों में धूल डालते रहे । अब आपको बड़े घर की हवा खानी होगी। __ सेठ ने केवल बाहर को देखा, भीतरी समस्या तक वह गया ही नहीं और पकड़ा गया। ___ आदमी का बाहरी व्यक्तित्व एक प्रकार का होता है और भीतरी व्यक्तित्व दूसरे प्रकार का होता है। उसमें दो प्रकार के व्यक्तित्वों का द्वन्द्व सदा बना रहता है । यह अन्तर्द्वन्द्व इतना जटिल होना है कि व्यक्ति अपने बारे में सही निर्णय नहीं ले पाता। ___ कर्मशास्त्र की भाषा में प्रत्येक व्यक्ति में दो प्रकार के व्यक्तित्व हैंएक औदयिक व्यक्तित्व और दूसरा है क्षायोपशमिक व्यक्तित्व । औदयिक व्यक्तित्व वह है, जिसको हमने स्वयं अर्जित किया है। जो संस्कार हमारे भीतर पड़े हैं, वे संस्कार, वासनाएं और कर्म परमाणु, ये अपना कार्य निरन्तर कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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