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________________ ६२ अवचेतन मन से संपर्क रहे हैं, उदय में आ रहे हैं, रस-विपाक दे रहे हैं - यह हमारा औदयिक व्यक्तित्व है । दूसरी ओर हर व्यक्ति अच्छाई भी करता है, अच्छी प्रवृत्ति करता है, वे भी अजित हैं, संचित हैं - यह हमारा दूसरा व्यक्तित्व है । इसे कर्मशास्त्रीय भाषा में क्षायोपशमिक व्यक्तित्व कहा जाता है । मनोविज्ञान ने भी डुएल पर्सनेलिटी — दुहरे व्यक्तित्व की बात को स्वीकृति दी, किन्तु वह यह समाधान नहीं दे सका कि ये दो व्यक्तित्व क्यों हैं ? कोई कारण नहीं बता सका। यह कारण कर्मशास्त्र के द्वारा ही जाना जा सकता है । कर्म शास्त्र कहता है कि हमारे ही भावों के कारण, हमारे ही आचरणों और व्यवहारों के कारण हमने अपने भीतर दो व्यक्तित्वों का निर्माण किया है । प्रातःकाल एक व्यक्ति जो शान्त, क्षमाशील और निर्द्वन्द्व जान पड़ता है, वह सायंकाल होते-होते अशांत, क्रोधाकुल और द्वन्द्व युक्त हो जाता है । आदमी एक दिन में न जाने कितने रूप बदलता है । यदि कोई 'हाईफ्रीक्वेन्सी' वाले कैमरे से उसके दस-बीस फोटो, भिन्न-भिन्न समय में ले तो ज्ञात हो सकता है कि कितने प्रकार के पोज आते हैं । शायद आदमी पहचान नहीं पायेगा कि ये सारे पोज एक ही व्यक्ति के हैं । अंग्रेजी में एक शब्द है-Mood | यह उन विभिन्न अवस्थाओं का जनक है । आदमी के मूड बनतेबिगड़ते हैं और उन्हीं के अनुसार उसकी अवस्थाएं बनती हैं । आदमी अन्तर्द्वन्द्व का जीवन जी रहा है । यह अन्तर्द्वन्द्व बहुत गहराई से आ रहा है । इसीलिए अपने अन्तर् व्यक्तित्व का निरीक्षण करने में और यह समझने के लिए कि मेरा व्यक्तित्व कैसा है, मैं कहां हूं, वह समर्थ नहीं हो पा रहा है । इसका मूल कारण है अन्तर्द्वन्द्व । बाहरी व्यक्तित्व और आंतरिक व्यक्तित्व के बीच में जो भेद रेखा है, उसको जब तक पाटा नहीं जाता और अखण्ड व्यक्तित्व को जब तक समझा नहीं जाता तब तक मानसिक अशांति मिट नहीं सकती, मानसिक समस्याएं समाहित नहीं हो सकतीं । ध्यान का अर्थ है अखंड व्यक्तित्व को जान लेना, बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व को पहचान लेना । विज्ञान ने संसार का बहुत उपकार किया है । जो व्यक्ति केवल बाह्य व्यक्तित्व में ही उलझे रहते थे, बाह्य दर्शन में ही भटक रहे थे, उनको भीतरी जगत् देखने को प्रेरणा दी। आज विज्ञान ने इतने सूक्ष्म उपकरण बना लिए हैं कि वस्तु के अन्तस्थल में जाकर उसका पूरा विश्लेषण किया जा सकता है । क्या इसे अध्यात्म की प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता ? वास्तव में विज्ञान और अध्यात्म में अन्तर कहां है ? सत्य को जानने का जहां तक प्रश्न है, मुझे लगता है, विज्ञान और अध्यात्म दो नहीं हैं । अध्यात्म का काम था - वस्तु के अंतस्थल में जाकर सत्य का निरीक्षण करना और यही काम विज्ञान का है । निरीक्षण के माध्यम दोनों के दो हो सकते हैं, पर लक्ष्य एक है। किसी वैज्ञानिक उप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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