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भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती परम्परा
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ये तीन अन्त तक अलग रहे, भगवान के शासन में पुनः सम्मिलित नहीं हुए। शेष चार निह्नव प्रायश्चित्त लेकर पुनः शासन में आ गए।
स्थानांग में सात निह्नवों का ही उल्लेख है। जिनभद्रगणी आठवें निह्नव बोटिक का उल्लेख और करते हैं, जो वस्त्र त्यागकर संघ से पृथक् हुए थे। श्वेताबर-दिगम्बर
दिगम्बर-सम्प्रदाय की स्थापना कब हुई, यह अब भी अनुसंधान सापेक्ष है । परम्परा से इसकी स्थापना वीर निर्वाण की छठीसातवीं शताब्दी में मानी जाती है। श्वेताम्बर नाम कब पड़ा-वह भी अन्वेषण का विषय है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सापेक्ष शब्द हैं । इनमें से एक का नामकरण होने के बाद ही दूसरे के नामकरण की आवश्यकता हुई।
भगवान महावीर के संघ में सचेल और अचेल दोनों प्रकार के श्रमणों का समवाय था। आचारांग में सचेल और अचेल दोनों प्रकार के श्रमणों का वर्णन है।
सचेल मुनि के लिए वस्त्रैषणा का वर्णन आयारचूला में है। उत्तराध्ययन में अचेल और सचेल दोनों अवस्थाओं का उल्लेख है। आगम-काल में अचेल मुनि जिनकल्पिक और सचेल मुनि स्थविरकल्पिक कहलाते थे।
भगवान् महावीर के महान व्यक्तित्व के कारण आचार की द्विविधता का जो समन्वित रूप हुआ, वह जम्बू स्वामी तक उसी रूप
आचार्य मत-स्थापना उत्पत्ति-स्थान कालमान १. जमाली बहुरतवाद श्रावस्ती कैवल्य के १४ वर्ष पश्चात् २. तिष्यगुप्त जीवप्रादेशिकवाद ऋषभपुर कैवल्य के १६ वर्ष पश्चात् ३. आषाढ़-शिष्य अव्यक्तवाद श्वेतविका निर्वाण के ११४ वर्ष पश्चात् ४ अश्वमित्र सामुच्छेदिकवाद मिथिला निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् ५. गंग द्वैक्रियवाद उल्लुकातीर निर्वाण के २२८ वर्ष पश्चात् ६. रोहगुप्त राशिकवाद अंतरंजिका निर्वाण के ५५४ वर्ष पश्चात् ७. गोष्ठा- अबद्धिकवाद दशपुर निर्वाण के ६०६ वर्ष पश्चात माहिल
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