________________
५.६
जैन परम्परा का इतिहास
प्रयोग नहीं करते थे । इनके गणराज्य में जैन-धर्म का समुचित
प्रसार हुआ ।
प्रव्रजित राजा
1
भगवान् के पास आठ राजा दीक्षित हुए थे - (१) वीरांगक, (२) वीरयशा, (३) संजय, (४) एणेयक, (५) सेय, (६) शिव, (७) उद्रायण, (८) शंख - काशीवर्धन । इनमें वीरांगक, वीरयशा और संजय - ये प्रसिद्ध हैं। टीकाकार अभय देवसूरि ने इसके अतिरिक्त कोई विवरण प्रस्तुत नहीं किया है । एणेयक श्वेतविका नरेश प्रदेशी का संबंधी कोई राजा था । सेय अमलकत्था नगरी का अधिपति था । शिव हस्तिनापुर का राजा था । उसने मोचा- मैं वैभव से सम्पन्न हूं, यह मेरे पूर्वकृत शुभ कर्मों का फल है । मुझे वर्तमान में भी शुभ कर्म करने चाहिए । यह सोच, राज्य पुत्र को सौंपा। स्वयं दिशाप्रोक्षित तापस बन गया । दो-दो उपवास की तपस्या करता और पारणा में पेड़ से गिरे हुए पत्तों को खा लेता, इस प्रकार की चर्या करते हुए उसे विभंग ज्ञान उत्पन्न हुआ । उससे उसने सात द्वीप और सात समुद्रों को देखा । यह विश्व सात द्वीप और सात समुद्र प्रमाण है, इसका जनता में प्रचार किया ।
|
भगवान् के प्रधान शिष्य गौतम भिक्षा के लिए जा रहे थे । लोगों में शिव राजर्षि के सिद्धांत की चर्चा सुनी । वे भिक्षा लेकर लौटे । गौतम ने पूछा- 'भगवान् ! द्वीप समुद्र कितने हैं ?' भगवान् ने कहा - 'असंख्य हैं ।' गौतम ने उसे प्रचारित किया । यह बात शिव राजर्षि तक पहुंची। वह संदिग्ध हुआ और उसका विभंग ज्ञान लुप्त हो गया । वह भगवान् के समीप आया, वार्तालाप कर भगवान् का शिष्य बन गया ।
उद्रायण सिन्धु- सौवीर आदि सोलह जनपदों का अधिपति था । - दस मुकुटबद्ध राजा इसके अधीन थे । भगवान् महावीर लम्बी यात्रा कर वहां पधारे । राजा ने भगवान् के पास मुनि दीक्षा ली ।
वाराणसी के राजा शंख के बारे में कोई विवरण नहीं मिलता । अंतकृतदशा आगम के अनुसार भगवान् ने राजा अलक को वाराणसी में प्रव्रज्या दी थी । सम्भव है यह उसी का दूसरा नाम है ।
उस युग में शासक सम्मत धर्म को अधिक महत्त्व मिलता था । इसलिए राजाओं का धर्म के प्रति आकृष्ट होना उल्लेखनीय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org