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________________ भगवान महावीर रोह, पिंगल आदि श्रमणों के प्रश्न तत्त्व-ज्ञान की बहती धारा के स्वच्छ प्रतीक हैं। बिम्बसार श्रेणिक भगवान् जीवित धर्म थे। उनका संयम अनुत्तर था । वह उनके शिष्यों को भी संयममूर्ति बनाए हुए था। महानिर्ग्रन्थ अनाथी के अनुत्तर संयम को देखकर मगध-सम्राट् बिम्बसार-श्रेणिक भगवान् का उपासक बन गया। वह जीवन के पूर्व-काल में बुद्ध का उपासक था। उसकी पट्टरानी चेलणा महावीर की उपासिका थी। उसने सम्राट् को जैन बनाने के अनेक प्रयत्न किए। सम्राट ने उसे बौद्ध बनाने के प्रयत्न किए । पर कोई भी किसी ओर नहीं झुका । सम्राट ने महानिग्रंथ अनाथी को ध्यानलीन देखा। उनके निकट गए। वार्तालाप हुआ। अन्त में जैन बन गए। ___इसके पश्चात् श्रेणिक का जैन प्रवचन के साथ घनिष्ठ सम्पर्क रहा । सम्राट् के पूत्र और महामंत्री अभयकुमार जैन थे। जैन परम्परा में आज भी अभयकुमार की बुद्धि का वरदान मांगा जाता है । जैन साहित्य में अभयकुमार संबंधी अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। श्रेणिक की तेईस रानियां भगवान् के पास प्रवजित हुई। उनके अनेक पुत्र भगवान् के शिष्य बने। सम्राट् श्रेणिक के अनेक प्रसंग आगमों में उल्लिखित हैं। चेटक वैशाली अठारह देशों का गणराज्य था। इसके नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी- ये अठारह सदस्य-नृप थे । उनमें प्रमुख महाराजा चेटक थे । ये हेहय कुल के थे । इनके पिता का नाम 'केक' और माता का नाम 'यशोमती' था । त्रिशला इनकी बहिन थी। इनका पूरा परिवार भगवान् पार्श्व की परम्परा का अनुयायी था। वे भगवान् महावीर के मामा थे । जैन-श्रावकों में उनका प्रमुख स्थान था । वे बारह व्रती श्रावक थे। उनके सात कन्याएं थीं। चेटक के सभी जामाता प्रारम्भ से ही जैन थे । श्रेणिक पीछे जैन बन गया। ___ अपने दौहित्र कोणिक के साथ चेटक का भीषण संग्राम हुआ। संग्राम-भूमि में भी वे अपने व्रतों का पालन करते थे। अनाक्रमणकारी पर प्रहार नहीं करते थे। एक दिन में एक बार से अधिक शस्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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