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________________ जैन परम्परा का इतिहास दे क्या मोक्ष-सिद्धि के लिए मुनि-जीवन की एकछत्रता को चुनौति नहीं दी ? घरवासी गृहस्थ भी किसी क्षण मुक्त हो सकता है, इसका अर्थ है कि धर्म की आराधना अमूक प्रकार के वेश या अमुक परम्परा की जीवन-प्रणाली को स्वीकार किए बिना भी हो सकती है । जीवनव्यापी सत्य जीवन को कभी और कहीं भी आलोकित कर सकता है । इस सत्य को अनावृत कर भगवान् ने धर्म को आकाश की भांति व्यापक बना दिया। 'प्रत्येक-बुद्ध-सिद्ध' का सिद्धांत भी साम्प्रदायिक दृष्टि के प्रति मुक्त विद्रोह है। 'प्रत्येक-बुद्ध' किसी सम्प्रदाय से प्रभावित तथा किसी धर्म-परम्परा से प्रतिबद्ध होकर प्रवजित नहीं होते । वे अपने ज्ञान से ही प्रबुद्ध होते हैं । भगवान् ने उनको उतनी ही मान्यता दी, जितनी अपनी परम्परा में प्रवजित होने वालों को प्राप्त थी। अश्रूत्वा केवली, अन्यलिंग-सिद्ध, गृहलिंग-सिद्ध और प्रत्येक बुद्ध-सिद्ध-महावीर की ये चार स्थापनाएं 'मेरे उपस्थान में आओ, तुम्हारी मुक्ति होगी, अन्यथा नहीं होगी, इस मिथ्या आश्वासन के सम्मुख खुली चुनौति के रूप में प्रस्तुत है। __ जो लोग अपने धर्म की प्रशंसा और दूसरों की निंदा करते थे, उनके सामने महावीर ने कटु-सत्य प्रस्तुत किया। भगवान् ने कहा'जो ऐसा करते हैं, वे धर्म के नाम पर अपने बंधन की श्रृंखला को और अधिक सुदृढ़ बना रहे हैं।' भगवान् महावीर से पूछा गया-'भंते ! शाश्वत धर्म कौन-सा भगवान् ने कहा-'किसी भी प्राणी को मत मारो, उपद्रुत मत करो, परितप्त मत करो, स्वतन्त्रता का अपहरण मत करो-यह शाश्वत धर्म है।' भगवान महावीर ने कभी नहीं कहा कि जैन धर्म शाश्वत है। तत्त्व शाश्वत हो सकता है, किन्तु नाम और रूप कभी शाश्वत नहीं होते। भगवान् महावीर का युग धर्म के प्रभुत्व का युग था। उस समय पचासों धर्मसम्प्रदाय थे । उनमें कुछ तो बहुत ही प्रभावशाली थे । कुछ शाश्वतवादी थे और कुछ अशाश्वतवादी। शाश्वतवादी अशाश्वतवादी सम्प्रदाय पर प्रहार करते थे और अशाश्वतवादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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