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________________ जैन परम्परा का इतिहास पधारे । वहां सोमिल नामक ब्राह्मण ने एक विराट् यज्ञ का आयोजन कर रखा था। उस अनुष्ठान की पूर्ति के लिए वहां इन्द्रभूति प्रमुख ग्यारह वेदविद् ब्राह्मण आये हुए थे। भगवान् की जानकारी पा उनमें पांडित्य का भाव जागा। इन्द्रभूति उठे । भगवान् को पराजित करने के लिए वे अपनी शिष्य सम्पदा के साथ भगवान् के समवसरण में आए। उन्हें जीव के बारे में संदेह था । भगवान् ने उनके गूढ़ प्रश्न को स्वयं सामने ला रखा। इन्द्रभूति सहम गए। उन्हें सर्वथा प्रच्छन्न अपने विचार के प्रकाशन पर अचरज हुआ। उनकी अन्तर्-आत्मा भगवान् के चरणों में झक गई। भगवान् ने उनका संदेह-निवर्तन किया। वे उठे, नमस्कार किया और श्रद्धापूर्वक भगवान् के शिष्य बन गए । भगवान् ने उन्हें छह जीव-निकाय, पांच महाव्रत और पचीस भावनाओं का उपदेश दिया। इन्द्रभूति गौतमगोत्री थे। जैन-साहित्य में इनका सुविश्रुत नाम गौतम है । भगवान् के साथ इनके संवाद और प्रश्नोत्तर इसी नाम से उपलब्ध होते हैं । ये भगवान् के पहले गणधर और ज्येष्ठ शिष्य बने। ___इंद्रभूति की घटना सुन दूसरे पण्डितों का क्रम बंध गया। एकएक कर वे सब आए और भगवान् के शिष्य बन गए। उन सबके एक-एक संदेह था १. इन्द्रभूति-जीव है या नहीं ? २. अग्निभूति-कर्म है या नहीं? ३. वायुभूति-शरीर और जीव एक है या भिन्न ? ४. व्यक्त-पृथ्वी आदि भत हैं या नहीं ? ५. सुधर्मा-यहां जो जैसा है वह परलोक में भी वैसा होता _ है या नहीं ? ६. मंडितपुत्र-बन्ध-मोक्ष है या नहीं ? ७. मौर्यपुत्र - देव हैं या नहीं? ८. अकम्पित-नरक है या नहीं ? ६. अचलभ्राता-पुण्य ही मात्रा-भेद से सुख-दुःख का कारण बनता है या पाप उससे पृथक् है ? १०. मेतार्य-आत्मा होने पर भी परलोक है या नहीं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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