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________________ भगवान् महावीर २७ समय लेटते, तब भी नींद नहीं लेते । जब कभी नींद सताने लगती तो भगवान् फिर खड़े होकर ध्यान में लग जाते । कभी-कभी तो सर्दी की रातों में घड़ियों तक बाहर रहकर नींद टालने के लिए ध्यानमग्न हो जाते। भगवान् ने पूरे साधना-काल में सिर्फ एक मुहूर्त तक नींद ली। शेष सारा समय ध्यान और आत्म-जागरण में बीता। भगवान् तितिक्षा की परीक्षा-भूमि थे। चंडकौशिक सांप ने उन्हें काट खाया । और भी सांप, नेवले आदि सरीसप जात के जन्तु उन्हें सताते । पक्षियों ने उन्हें नोचा। भगवान् को मौन और शून्यगृह-वास के कारण अनेक कष्ट झेलने पड़े। ग्राम-रक्षक राजपुरुष और दुष्कर्मा व्यक्यिों का कोपभाजन बनना पड़ा। उन्होंने कुछ प्रसंगों पर भगवान् को सताया, यातना देने का प्रयत्न किया । भगवान् अबहुवादी थे । वे प्रायः मौन रहते । आवश्यकता होने पर भी विशेष नहीं बोलते । एकान्त स्थान में उन्हें खड़ा देख लोग पूछते----'तुम कौन हो ?' तब भगवान् कभी-कभी नहीं बोलते । भगवान् के मौन से चिढ़कर वे उन्हें सताते । भगवान् क्षमा-धर्म को स्व-धर्म मानते हुए सब कुछ सह लेते । वे अपनी समाधि [मानसिक संतुलन या स्वास्थ्य] को भी नहीं खोते । कभी कभी भगवान् प्रश्नकर्ता को संक्षिप्त-सा उत्तर भी देते । 'मैं भिक्ष हं'-- यह कह कर फिर अपने ध्यान में लीन हो जाते। देवों ने भी भगवान् को अछूता नहीं छोड़ा। उन्होंने भी भगवान् को घोर उपसर्ग दिए । भगवान् ने गंध, शब्द और स्पर्श सम्बन्धी अनेक कष्ट सहे। सामान्य बात यह है कि कष्ट किसी के लिए भी इष्ट नहीं होता। स्थिति यह है कि जीवन में कष्ट आते हैं, फिर वे प्रिय लगें या न लगें। कुछ व्यक्ति कष्टों को विशद्धि के लिए वरदान मान उन्हें हंसने-हंसते झेल लेते हैं । कुछ व्यक्ति अधीर हो जाते हैं । अधीर को कष्ट सहन करना पड़ता है और धीर कष्ट को सहते हैं । साधना का मार्ग इससे भी और आगे है। वहां कष्ट निमंत्रित किये जाते हैं । साधनाशील उन्हें अपने भवन का दृढ़ स्तम्भ मानते हैं । कष्ट आने पर साधना का भवन गिर न पड़े, इस दृष्टि से वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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