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भगवान् महावीर इसलिए माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा।
वे ज्ञात [नाग] नामक क्षत्रिय-कुल में उत्पन्न हुए, इसलिए कुल के आधार पर उनका नाम नागपुत्र हुआ।
साधना के दीर्घकाल में उन्होंने अनेक कष्टों का वीर-वृत्ति से सामना किया। अपने लक्ष्य से कभी भी विचलित नहीं हुए, इसलिए उनका नाम महावीर हुआ। यही नाम सबसे अधिक प्रचलित है।
सिद्धार्थ काश्यप-गौत्रीय थे। पिता का गौत्र ही पुत्र का गौत्र होता है । इसलिए महावीर काश्यप-गौत्रीय कहलाए। यौवन और विवाह
बाल क्रीड़ा के बाद अध्ययन का समय आया। तीर्थंकर गर्भकाल से अवधि-ज्ञानी होते हैं । महावीर भी अवधि-ज्ञानी थे। वे पढ़ने के लिए गये । अध्यापक जो पढ़ाना चाहता था, वह उन्हें ज्ञात था । आखिर अध्यापक ने कहा -आप स्वयं सिद्ध हैं। आपको पढने की आवश्यकता नहीं।
___ यौवन आया। महावीर का विवाह हुआ। वे सहज विरक्त थे । विवाह करने की उनकी इच्छा नहीं थी। पर माता-पिता के आग्रह से उन्होंने विवाह किया।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर अविवाहित ही रहे। श्वेताम्बर-साहित्य के अनुसार उनका विवाह क्षत्रिय-कन्या यशोदा के साथ हुआ। उनके प्रियदर्शना नाम की एक कन्या हुई । उसका विवाह सुदर्शना के पुत्र [आपके भानजे] जमालि के साथ हुआ।
उनके एक शेषवती [दूसरा नाम यशस्वती नाम की दौहित्री-धेवती हुई। महाभिनिष्क्रमण
वे जब अट्ठाईस वर्ष के हुए तब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। उन्होंने तत्काल श्रमण बनना चाहा पर नन्दिवर्धन के आग्रह से वैसा हो न सका । उन्होंने महावीर से घर में रहने का आग्रह किया। वे उसे टाल न सके । दो वर्ष तक फिर घर में रहे। यह जीवन उनका एकांत विरक्तिमय बीता। इस समय उन्होंने कच्चा जल पीना छोड दिया, रात्रि-भोजन नहीं किया और ब्रह्मचारी रहे।
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