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________________ १५० जैन परम्परा का इतिहास के दबाव और बाहरी प्रभाव से रिक्त मानस में जो आत्मौपम्य का भाव जागता है, वह हृदय परिवर्तन है । हृदय वही होता है, उसकी वृत्ति बदलती है, इसलिए उसे हृदय परिवर्तन कहा जाता है । शक्ति और प्रभाव से दबकर जो हिंसा से बच जाता है, वह हिंसा का प्रयोग भले न हो, किन्तु वह हृदय की पवित्रता नहीं है, इसलिए उसे हृदय परिवर्तन नहीं कहा जा सकता । अहिंसा का आचरण वही कर सकता है जिसका हृदय बदल जाए । अहिंसा का आचरण किया जा सकता है किन्तु कराया नहीं जा सकता । अहिंसक वही हो सकता है जो अपने को बाहरी वाता - वरण से सर्वथा अप्रभावित रख सके । बाहरी वातावरण से हमारा तात्पर्य शक्ति, मोहाणु और पदार्थ से है । इनमें से किसी एक से भी प्रभावित आत्मा हिंसा से नहीं बच सकती । आक्रमण के प्रति आक्रमण और शक्ति प्रयोग के प्रति शक्तिप्रयोग कर हम हिंसा के प्रयोगात्मक रूप को टालने में सफल हो सकें, यह सम्भव है, पर वैसा कर हम हृदय को पवित्र कर सकें या करा सकें यह सम्भव नहीं है । आचार्य भिक्षु ने कहा- शक्ति के प्रयोग से जीवन की सुरक्षा की जा सकती है, पर वह अहिंसा नहीं है । अहिंसा का अंकन जीवन या मरण से नहीं होता, उसकी अभिव्यक्ति हृदय की पवित्रता से होती है । नैतिकता भगवान् महावीर ने गृहस्थ के लिए जो आचार-संहिता निर्धारित की उसमें नैतिकता का मुख्य स्थान है । गृहस्थ सामाजिक प्राणी है । वह समाज में जीता है। उसका व्यवहार समाज को प्रभावित करता है । अध्यात्म वैयक्तिक है । उसका व्यवहार में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब वैयक्तिक नहीं होता, वह सामाजिक हो जाता है । धार्मिक व्यक्ति अपने अन्तःकरण में आध्यात्मिक रहे और व्यवहार में पूरा अधार्मिक, यह द्वैध अध्यात्म का लक्षण नहीं है । अध्यात्म आन्तरिक वस्तु है । उसे हम नहीं देख सकते । उसका दर्शन व्यवहार के माध्यम से होता है । जिस व्यक्ति का व्यवहार शुद्ध, निश्छल और करुणापूर्ण होता है, वह व्यक्ति आध्यात्मिक है । उसका व्यवहार अध्यात्म को बाह्य जगत् में प्रतिबिम्बित कर देता है। किंतु जैसे-जैसे धर्म के क्षेत्र में बहिर्मुखी भाव बढ़ता गया, वैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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