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________________ भगवान् ऋषभ से पार्श्व तक समय के चरण आगे बढ़े। काल स्निग्ध-रुक्ष बना, तब वक्षों की टक्कर से अग्नि उत्पन्न हुई । वह फैली । वन जलने लगे। लोगों ने उस अग्नि को देखा और उसकी सूचना ऋषभ को दी। उन्होंने अग्नि का उपयोग और पाक-विद्या का प्रशिक्षण दिया। खाद्यसमस्या का समाधान हो गया। शिल्पकला और व्यवसाय का प्रशिक्षण ___ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को ७२ कलाएं सिखलाईं। कनिष्ठ पुत्र बाहुबलि को प्राणी की लक्षण-विद्या का उपदेश दिया। बड़ी पुत्री ब्राह्मी को अठारह लिपियों और सुन्दरी को गणित का अध्ययन कराया। धनुर्वेद, अर्थशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, क्रीड़ा-विधि आदि-आदि विद्याओं का प्रवर्तन कर लोगों को सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत बना दिया। _अग्नि की उत्पत्ति ने विकास का स्रोत खोल दिया। पात्र, औजार, वस्त्र, चित्र आदि शिल्पों का जन्म हुआ। अन्नपाक के लिए पात्र- निर्माण आवश्यक हआ। कृषि, गह-निर्माण आदि के लिए औजार आवश्यक थे, इसलिए लौहकार-शिल्प का आरम्भ हुआ। सामाजिक जीवन ने वस्त्र-शिल्प और गह-शिल्प को जन्म दिया। नख, केश आदि काटने के लिए नापित-शिल्प (क्षौर-कर्म) का प्रवर्तन हुआ। इन पांचों शिल्पों का प्रवर्तन आग की उत्पत्ति के बाद हुआ। पदार्थों के विकास के साथ-साथ उनके विनिमय की आवश्यकता अनुभूत हुई। उस समय ऋषभ ने व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया। ___ कृषिकार, व्यापारी और रक्षक-वर्ग भी अग्नि की उत्पत्ति के बाद बने । कहा जा सकता है-अग्नि ने कृषि के उपकरण, आयातनिर्यात के साधन और अस्त्र-शस्त्रों को जन्म दे मानव के भाग्य को बदल दिया। पदार्थ बढ़े तब परिग्रह में ममता बढ़ी, संग्रह होने लगा। कौटुम्बिक ममत्व भी बढ़ा । लोकैषणा और धनैषणा के भाव जाग उठे। सामाजिक परम्पराओं का सूत्रपात पहले मृतकों की दाहक्रिया नहीं की जाती थी, अब लोग मृतकों को जलाने लगे। पहले पारिवारिक ममत्व नहीं था, अब वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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